शीतल वायु के स्पर्श से कफ़ तथा वायु प्रकुपित होकर पित्त मे मिलकर बाहर त्वचा पर तथा आन्तरिक रक्त आदि धातुओं मे फ़ैलकर शीत पित्त रोग को उत्पन्न करती है ।
शीत पित्त मे त्वचा पर भिड. , ततैया, के काटने जैसे शोथ युक्त लाल चकते दिखाई पडते है ,जिनमे अत्यधिक खुजली और जलन होती है ।
आधुनिक चिकित्सा विग्यान मे इसकॊ एलर्जी से उत्पन्न माना जाता है । आयुर्वेद मे यह रोग आमाशय से उत्पन्न माना जाता है ।
आयुर्वेदिक चिकित्सा---
अजवायन २ ग्रा. और उतना ही पुराना गुड मिलाकर गोलिया बना लो , इनको दिन मे दो या तीन बार ताजे पानी के साथ ले।
हरिद्रा खण्ड ----- दो दो चमच दिन मे दो बार ताजे पानी के साथ ।
सुतशेखर रस- २५० मि. ग्रा.
धात्री लोह --- २५० मि. ग्रा.
अविपत्तिकर चुर्ण-- २ ग्रा.
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खाना खाने से पहले दो बार
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सारिवद्यासव--- २० मि. लि. तथा उतना ही जल मिलाकर
---------- खाना खाने के बाद दो बार।
इन योगों को लगातार ३० दिनों तक सेवन करे और रोग से सदा के लिये छुटकारा पायें।
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