बुधवार, 22 अप्रैल 2009

ग्रीष्म ऋतु आहार विहार

आयुर्वेद एक चिकित्सा पद्दति होने के साथ साथ एक जीवन दर्शन भी है । हमारे आचार्यों ने  ऋतुऒं के अनुसार आहार विहार
का बहुत ही अच्छा वर्णन किया गया है । आज कल गरमी जोरों पर है । इस काल मे हमारे आचार्य क्या कहते है यह देखेते है _
 ग्रीष्म ऋतु --दो महीने यानि बैशाख और जयेष्ठ को ग्रीष्म ऋतु माना गया है । राशि के हिसाब से वृष और मिथुन राशि मे जब सुर्य होता है तो वह काल ग्रीष्म काल होता है ।

   ग्रीष्म ऋतु मे  अति तीक्ष्ण किरणों वाला सूर्य संसार से स्नेह को नष्ट करता है ; जिससे प्रतिदिन मनुष्यों मे श्लेष्मा ( कफ़) घटता है और वायु बढती है इसलिये इस ऋतु मे नमक, कटु,तथा अम्ल रस, व्ययाम, और सूर्य की किरणो का त्याग करना चाहिये॥ ( अ० ह्रु०)
सेवनीय- मधुर , लघु, स्निग्ध, और शीतल एवं द्रव पदार्थ।
अतिशय शीतल जल से स्नान करना और जॊ से बने सत्तु को खाना।
 असेवनीय--  मद्य का सेवन, ( यदि करना है तो भरपुर पानी मिलाकर करें) , घन मांस रस ( गाढा मास का सूप) या रुक्ष मांस, और मैथुन कर्म का सेवन मत करे
 
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