सोमवार, 4 मार्च 2013

HIV & AIDS and its management in Ayurveda, एच आई वी एवम् ए आई डी एस का आयुर्वेद मे साक्षेप निदान एवम् चिकित्सा सुत्र

एच आई वी संक्रमण--  यह एक वाईरल संक्रमण होता है जो कि शरीर की रोग प्रतिरोधक प्रणाली को धीरे धीरे खत्म कर देता है , फ़लस्वरुप रोगी विभिन्न रोगों से ग्रसित होकर मृत्यु का ग्रास बन जाता है ।

( एच आई वी संक्रमित व्यक्ति अपनी जिन्दगी सामान्य रुप से जीसकता है ,  बस उसको जरुरत है सजग रहने की )

आयुर्वेद मे लगभग सभी संहिताओं मे ओज का वर्णन किया है , यही मनुष्य का बल होता है यह ओज ही शरीर को रोगों से लडने का बल प्रदान करता है ।  इस रोग मे इस ओज का ही क्षय होता है , जिसके कारण मनुष्य अकाल मृत्यु का ग्रास बन जाता है । हजारों साल् पहले ही इस रोग का वर्णन आयुर्वेद मे किया गया है ।

  एच आई वी संक्रमण कैसे होताहै --  वैसे तो रोग प्रतिरोधक क्षमता एक भगवान की देन होती है ।
मुख्य कारण--

  • योन संबंध--  असुरक्षित योन संबध 
  • पहले से प्रयोग की गई सिरिंज से
  • संक्रमित रक्त से 
  • संक्रमित माता के दुध से उसके बच्चे मे 
योन संबंध -- असुरक्षित योन संबध  ही मुख्य कारण  होता है , इसमे  असुरक्षित योनि मैधुन, गुदा मैधुन, मुख्य है
गुदा मैधुन अत्यधिक गंभीर होता है । मुख मैथुन इनकी आपेक्षा बहुत ही कम गंभीर होता है ।

मुख मैथुन से एच आई वी संक्रमण बहुत ही विरले केस मे मिला है ।

एच आई वी वाईरस के वाहक--  संक्रमित व्यक्ति का  तरल --

  • रक्त
  • योनि तरल
  • गुदा तरल
  • प्लास्मा
  • वीर्य
मुख के तरल ( सलाईवा) मे एच आई वी वाईरस नग्न्य होता है }
एच आई वी संक्रमण संक्रमित व्यक्ति के वाईरल लोड पर निर्भर रहता है , यदि वाईरल लोड ज्यादा रह्ता है तो संक्रमण का ज्यादा खतरा रहता है ।
एच आई वी संक्रमित व्यक्ति विना कुछ लक्षणॊ के भी संक्रमण कर सकता है ।

यदि आपने असुरक्षित योन संबध किया है तो तुरंत ही आप एच आई वी का टेस्ट करवाएं , जल्दी पता लगने पर आप्  की चिकित्सा संभव है और एक् बेहतर जीवन जी सकते हो ।


एच आई वी संक्रमण के मुख्य लक्षण--
यद्यपि एच आई वी संक्रमित व्यक्ति कई सालो तक बिना लक्षणॊं के रह सकता है , लक्षण भी एक समान नही होते हैं ।  एच आई वी स्ंक्रमण की अंतिम अवस्था एड्स के नाम् से जानी जाती है  लेकिन आजकल बेहतर इलाज होने के कारण इस अवस्था से बचा जा सकता है ।

  • बार बार सर्दी जुकाम लगना
  • लो ग्रेड फ़ीवर यानि लगातार बुखार का बना रहना
  • शरीर मे फ़ोड़े फ़ुन्सियों का अधिक निकलना 
  • अतिसार होना ।
  • शरीर का अचानक भार कम हो जाना ।
ये लक्षण मुख्य रुप से होते हैं ,  पर् जरुरी नही है कि ये लक्षण हो , या ये लक्षण हो तो जरुरी नही है कि संक्रमण हो ।
निश्चय् तो टेस्ट करवाने से होता है ।


संक्रमण से बचने के उपाय -- इसका मुख्य उपाय है धर्म का पालन करना । मर्यादा मे रहना ।  अजनबी से योन संबंध करते वक्त कंडोम का प्रयोग करना । कंडोम इस रोग को रोकने मे ९९% कारगार है।



आधुनिक चिकित्सा मे इसका इलाज-- आजकल एंटी वाईरल ड्रुग  से इस रोग की रोकथाम बहुत हद तक हो गई है  । लेकिन आधुनिक चिकित्सा मे इसका समुल नाश नही किया जा सकता है , यानि की दवाईयों का प्रयोग पूरी उम्र तक किया जाता है

एच आई वी संक्रमण  के बारे आयुर्वेद मे क्या मत है इसका उल्लेख अगले लेख मे किया जाएगा ।