शुक्रवार, 3 अक्तूबर 2008

अर्श रोग (बावासीर)

अर्श रोग एक बड़ा ही भयानक रोग होता है , मुख्या रूप से यह दो प्रकार का होता है ,
आंतरिक अर्श और बाहरी अर्श , आंतरिक अर्श को रक्तज अर्श भी कहते है , तथा बाहरी अर्श को सुखी या बादी अर्श भी कहते है ,
इस रोग के कारण---१ सहज ( खानदानी) २ लगातार कब्ज के कारण ३ हाजमा ठीक न होने के कारण , लगातार दस्त लगने के कारण । लगातार बैठा रहने के कारण ,
मुक्य रूप से यही कारण होते है ।
निवारण :- रात को सोते समय कब्ज़ को ख़तम करने वाला चूरन जरुर ले उदारहण के लिए कलि हरडा और सोंठ और कला नमक इनको मात्रा अनुसार मिलकर रात को गुनगुने पानी के साथ प्रयोग कर सकते है , इसके अतिरिक्त बाज़ार में इसबगोल के चूर्ण मिलते है उनका भी प्रयोग किया जा सकता है ।
२ अभ्यारिस्ट २० एम् एल + २० एम् एल पानी मिला कर खाना खाने के बाद ;
३ अग्नि दीपन आहार विहार ;
४ रक्तज अर्श में कुताजरिस्ट भी का प्रयोग भी कर सकते है तथा अर्शोघ्नी वती का भी प्रयोग किया जा सकता है ।
विहार; जयादा समय एक जगह पर न बैठे रहे ,
पखाना करते समय जयादा जोर मत लगाये ;
जयादा तली हुई चीजे और मसालेदार खाना मत खाए
समाया पर खाना खाए ;
कृपया अधिक जानकारी के लिए नजदीक के आयुर्वेदिक डॉक्टर से सम्पर्क करे या मुझे सम्पर्क करे :
धनायद
जीवा आयुर्वेद

गुरुवार, 2 अक्तूबर 2008

शरद कालीन अहार विहार

वर्शा कलीन श्जीत जिनके अन्गो को सात्म्य बन गया है: ऎसि पुरूशों में - सुर्य की किर्णों से सहसा ही गरम होने पर वर्शा में स्न्चित पिज्ज शरद काल मे कुपित हो जाता है. इस पित्त को शान्त करने के लिये,तिक्त घ्र्त का पान उत्तम है. बसन्त में कफ के लिये वमन ; वर्शा में वायु के लिये आस्थाअपोअन बस्ति; शरद में पित्तमो़अन करना चाहिए
यद्यपि पित्त के हरण के लिये विरेचन सर्वोत्तम उपाय है; त्थापि शन्ति के लिये एवं शरिर को स्निग्ध करने के लिये तिक्त घ्र्त का पान उत्तम है. ब्गसन्त में कफ के लिये वमन; वर्श में वायु के लिये आस्ताअपनबस्ति ; शरद में पित्त के लिये विरेचन उत्तम है

बुधवार, 1 अक्तूबर 2008

जीवा आयुर्वेद. काल

काल
जिसे काल कहते है, वह समस्त एश्व्य्र्य युक्त होता है,किसी से उत्पन्न हुआ नहिं है, आदि मऔर मरण उस काल ही के अधिन होता है. वह सूक्श्मध्य और अन्त रहितहै, रसों की व्यापप्तिऔर संपत्ति तथा प्राणियों वह सुक्श्म कला भर भी नही थहरता नही है.सर्व प्राणियों क संकलन करता है. इसलिये उसे काल ककते है.

सोमवार, 29 सितंबर 2008

Jiva Ayurveda

FOOD AND MOOD
FOOD satiates at different levels, one of wihichis emotional need.
There is plenty that can happen over a romantic stimulating seducing and relaxing dinner.
From inflaming passion to the blessing of love paving way to a lifeling relationship.
HONEY:Honey has been viewed as an aphrodisiac throughout history. Newly weds in ancient Europe mixed it with wone to boost their stamina.(hence the term honeymoon a month of honey)
ONION: Possessing aphrodisiac potential, it stimulates sexual appetite and arise sexual prowess. According to researchers, it is the amazing amount of selenium in foods of allium whic helps to set the mood balance in exciting dircttions.
BANANA: It is a triggering combination of fibre, sugar and serotonin, Glucose sugar of the carbohydreate family is a magic source of energy for also ensure higher levels of serotonin in the brain, which elevates the mood.
OYSTERS: These were regareed as aphrodisiacs even during the Roman Empire. Casanova ate 50 of them every morning with his lady love. A mysterrious delicacy famous for erotic qualities, oysters are rich in zinc, iodine and phosphorus, These ingredients increase both sperm and testrosterone production and the secretion of vaginal lubricant. So they may not look particularly appealing but they do work as well as an aphrodisiac.
VANILLA: The lncans and mayans wore vanilla during marriage rituals-- they believed its fragrance had magical posers to increase fertiltty . Sex guru Havelock Ellis discovered that workers at a vanilla processing plant were almost always in a near perennial state of sexual arousal and perhaps made the best bedmates ever.
JASMINE:It is known to be one of the most potent aphrodisiacs of all time. The perfume just like flowers it is made from , is strongest at night. That's why you have Indian brides not to mention the bed for the seddding night all bedeckedc in jasime "gajras"
jiva ayurveda
A clinic for chronic diseases