शनिवार, 6 फ़रवरी 2010

गर्भपात एवं निवारण (Abortion and its Ayurvedic treatment )

आज के आधुनिक युग मे नकली आहार विहार के कारण गर्भपात की समस्या दिनों दिन बड्ती जा रही है ,। महंगे से महंगे इलाज के बावजूद कुछ अवस्थाऒं मे गर्भपात हो ही जाता है।
आयुर्वेद मे गर्भिणी के लिये कुछ विशेष आहार विहार का वर्णन किया गया है , जिसकॊ गर्भणि परिचर्या के नाम से जाना जाता है । यदि स्त्री इसका पालन करती है तो इस प्रकार की समस्या से छुटकारा पाया जा सकता है ।

गर्भपात के कारण---गर्भावस्था मे संभोग विशेष कर प्रारम्भ और अन्तिम महीनो मे ।
-अधिक कार्य करना
-अभिघात या चोट लगना, तेज चलने वाली सवारी करना, रात मे जागना और दिन मे सोना, वेगावरोध, उपवास करना,उकडु बैठना,
- जिन इन्द्रयों को जो भाव अच्छे न लगे उनको ग्रहण करना जैसे कि बीभत्स दृष्यों को देखना, कर्कश एवं कठोर शव्दो को सुनना, आदि,
-- स्त्री परपीडन ( किसी के दबाव मे रहना)
ये मुख्य कारण है ।
इसके अतिरिक्त गर्भ कि विकृति से और माता के योनि दोषों से भी गर्भपात की संभावना रहती है ।

लक्षण-गर्भाशय , कटि, पेडु, एवं बस्तिप्रदेश मे शूल और रक्तदर्शन ये गर्भपात के सामान्य लक्षण हैं ।


चिकित्सा-- कारणो का परित्याग, संपुर्ण शय्या विराम । शीतल आहार विहार, क्षीरी वृक्षों(बरगद, गुलर, पिलखन आदि) का पेडु पर लेपन और पान
मासानुमासिक गर्भस्रावहर योग-
१ प्रथम मास-श्वेत चन्दन , शतावरी , देशी खाण्ड, और मल्लिका इन सब को चावल के धावन मे पीसकर पीयें।

२ द्वितीय मास-- कमल, सिंघाडा और कसेरु को चावल के धावन के साथ पान

३ तृतीय मास-- क्षीर काकोली , काकोली या शतावर और आँवले को पीसकर कोष्ण जल के साथ पान

४चतुर्थ मास मे -- नीलकमल , कमल की जड, कटेरी की जड और गोखरु दुध मे पीसकर और घोलकर और देसी खाण्ड मिला कर पान करना

५ पंचम मास--नीलकमल और शतावरी को दुध और पानी मे उबाल कर पान करना

६ षष्ठ मास-- विजोरे निंबु के बीज, प्रियुंगु, लालचन्दन और नीलकमल को गाय के दुध मे पीसकर दुध के साथ पान करना

७शतावरी और मृणाल ( कमल ) को दुध मे उबाल कर पान करना ।

८ अष्टम मास -- ढाक के कोमल पत्तों को जल के साथ पीसकर घोल बनाकर मिश्रि मिलाकर पान ।