आपके सहयोग के लिये धन्यवाद ।
एक रोगी जिसकी आयु ३२ वर्ष है , भार ६७ कि. ग्रा, शरीर की लम्बाई लगभग ६ फ़ुट, प्रकृति - कफ़वात प्रधान, रंग- गेंहुआँ ,
अग्नि ,विषम,
निद्रा सम्यक
मल प्रवृति , तीन या चार बार
रोगी को लगभग ६ सालों से कमर मे दर्द रहता था , त्रिकसंधि मे , रोगी ने कोई उचित चिकित्सा नही करवाई , बस कुछ योग और एक्सर्साईस करता था, फ़िर शुल उसके रोजमर्रा के कार्य मे ज्यादा दिक्क्त नही करती थी,
पर एक साल से उसके त्रिकसंधि के दर्द मे कुछ उपशय तो मिल गया लेकिन दर्द वाम नितम्ब और और त्रिकास्थ के उपरि भाग मे रहने लगा है ,
जिसके कारण रोगी जब बैठ कर उठता है तो नित्म्ब और त्रिकसंधि के मर्मों मे असहय पीड़ा होती है ।
रोगी को अभी मै रुक्ष स्वेद, और त्रयोदशांग गु. , महारास्नादिक्वाथ और बलारिष्ट दे रहा हुं ।
पर रोगी को संतोषजनक उपशय नही मिल रहा है ।
कृपया मार्गदर्शन करें।
डां भट्ट सर जी से चाहुंगा कि मर्म चिकित्सा का इस तरह के रोगों मे कितनी उपयोगी है । सर कृपया अपने विचार खुल कर बताएं ।
धन्यवाद
- आपकी चिकित्सा व्यवस्था बिलुकुल ही सही हे. फिर भी अगर उपशय नहीं मिल रहा तो अश्वगंधा और लशुन के बारे में सोच सकते हे. अगर गृध्रसी जैसे लक्षण हे तो पारिजात पत्र चूर्ण लाभदायी रहेगा. कटी वस्ति के बारे में भी सोच सकते हे
- मल प्रवृत्ति ३ या ४ बार है.
सामता का विचार रखे.
१) अजमोदादी चूर्ण + षड-धरण चूर्ण + समीर पन्नग + जीरक + रस-पाचक + एरंड-मूल + दशमूल - सुबह शाम - गर्म जल से
२) आम पाचक वटी - व्यानोदान १-१
३) गन्धर्व हरीतकी चूर्ण - स्वप्न काले गरम पानी से
योग बस्ती - दाशमूलिक निरुह + सहचरादी तेल मात्रा बस्ती
अभ्यंग के लिए - सहचरादी / प्रसारिणी तेल + सैन्धव
अत्यधिक शूल प्रदेशे - अग्नि कर्म
सामता कम होने के बाद त्रयोदशांग, बलारिष्ट आदि का प्रयोग करे.. - राणासाहब,मुझे लगता है इस रुग्ण को प्रवाहिका है--इस लिए अग्नि-विषम है और ३-४ बार मल-प्रवृत्ति होती है.इसी सामावस्था के कारण कटिशूल उत्पन्न हुआ और अब त्रिक एवं नितम्ब प्रदेश में शूल है.
*एरंडमूल--क्षीरपाक
*रुक्ष स्वेद-जारी रखना चाहिए.
*कुटजारिष्ट+विडंगारिष्ट--व्यानोदाने.
*हरीतकी--अपाने
*कुटज+धान्यक+बिल्व+मुस्ता+श्वेतचन्दन---२,अनन्नकाले. - Pachana is essential. U can provide 10 ml of erand tail in shunthi quath 2 times a day.
- The way the clinical symptoms been categorised, my intuition suggests that the person may be suffering from Unilateral (left) SACRO ILITIS ?
Please clinically evaluate the Sacro Iliac joint with SLR test etc.signs.
Please do consider the physiology of S.I Jt as stated below into consideration, which will make clear why I am stating that the pathology lies in the s.I Joint.
The SI joint, like all lower extremity joints, provides a "self-locking" mechanism (where the joint occupies or attains its most congruent position, also called the close pack position) that helps with stability during the push off phase of walking. The joint locks (or rather becomes close packed) on one side as weight is transferred from one leg to the other, and through the pelvis the body weight is transmitted from the sacrum to the hip bone.
As of your Mx ,
It is a good Rx.
along with your Rx, advice the patient to SLEEP ONLY IN SUPINE POSTURE(though he may feel stretching in the gluteals,low back,perineal & thigh initially, for 5 to 10 minutes, later the stretched muscles will automatically gets relaxed and sooth him from his pain.)
Ask him to AVOID SLEEPING ON SIDES. I assume that he is more prone to sleeping over his RIGHT SIDE. That is why he is not getting relieved of the pain in left side in spite of good medication.
With regards to Marma I will post it separately. (Due to want of time & space )
Thanks for referring this case in the panel and for your faith in me.
सर्वे सन्तु निरामय || - Due to the amount of muscular spasm involved in this case, as I consider it to be Sacro-ilitis,in the form of (most probably) right para spinal spasm, it is difficult to apply the required amount of pressure over the Marmas individually, initially.
Hence, my suggestion would be कटी वस्ति over the regions of both SACRO-ILIAC JOINTS. simultaneously along with the manipulation of the following मर्म's in forthcoming order.
{1} कृकाटिक
{२} कटिक तरुण
{३} नितम्ब
{४} लोहिताक्ष
{५} उर्वी &
{६} क्षिप्रा
इस अवसर पर आपको एक tip देना का कोशीश करूंगा ||
The following टिप्पणी does not come under the purview of मर्माणि चिकित्सा , and is based on my अनुभूतिका अवलोकन ||
Try to locate the exact mid-point of कटिक तरुण
& नितम्ब.It will roughly come near the dimple present in the lateral aspect of the nitamba. Having located, firmly place your thumb over that point and ask the patient to raise his legs, up to the point of his comfort.
Please note the SLR, प्रिओर to & after this method, to experience its amazing effect.
धरम्पल्जी, में सोचता की आप
ज़रूर इस विधि को कर्म पालन ???? है ना ?
राम राम ||
"सर्वे जना: सुखिनो भवन्तु : |
सर्वे सन्तु निरामया :" || - मेरी सलाह ये है की आप रोगी को वैतरण वस्ति गोमूत्र से दे
बहुत ही उपयोगी होगी
धन्यवाद्