कई बार साधारण जुकाम , अपथ्य पालन करने पर या चिकित्सा न करने पर दुष्ट पीनस या नजले का रुप प्राप्त कर लेता है ,बार-बार छींको का आना, अत्यधिक नासा स्राव, श्लेष्मा से नाक का भरा रहना, आँखों मे लाली व स्राव, विपरित गन्ध आना, सिर मे दर्द, आदि दुष्ट पीनस मे निम्न्लिखित विकृतियाँ स्थाई रुप से आ सकती है -- श्लैष्मिक कला का जीर्ण शोफ़, नासास्रोत का कफ़ से भरा रहना, गन्ध्ग्राही केन्द्र की विकृति, वायु विवर( साईनस) का स्थाई विकार,
आयुर्वेदिक चिकित्सा व्यवस्था--१ शिरो विरेचन से गाढे कफ़ को निकालना, २ विरेचन ३ एनिमा ( आस्थापन) ४ कवलग्रह ( औषधि युक्त क्वाथ मुख मे रखाना) ५ निवात स्थान ६ शिर पर गर्म कपडा रखना ७ रुक्ष यवान्न सेवन( रुखे अन्नो का सेवन) और हरितिकी सेवन
चित्रक हरितकी, लक्ष्मि विलास रस, हरिद्रा खन्ड, सुतशेखर रस, व्योषादि वटी, तालीशादि चुर्ण, षडबिन्दु तैल नस्य, च्यवनप्राश, द्राक्षारिष्ट , आदि औषधियाँ भी बहुत ही हितकर है
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