सचमुच यह रोग बहुत ही दुखदाई होता है , किसी भी वक्त हिचकी का दोरा शुरु हो जाता है और बहुत देर तक लगातार हिचकी आती रहती हैं ।
कारण- जल्द बाजी मे भोजन करना, विदाहीअन्न, गुरु, रुक्षाहार, शीतल स्थान, धूल धुँआ, तेज हवा, शक्ति से अधिक काम करना, मल मुत्र आदि के वेगों को रोकना, विषम भोजन, मर्म स्थान पर चोट लगना, और शीत और उष्ण का एक साथ संपर्क होना आदि।
आधुनिक चिकित्सा मे इसके दो मुख्य कारण, पाचन संस्थानगत विकृति और वातनाडी संस्थान विकृति को माना गया है।
आहार विहार व्यवस्था-- कारणो का पुर्ण परित्याग करें। कुम्भक प्राणायाम , उष्ण और लघु आहार का सेवन, अचानक मुख पर शीतल जल के छिटं दे। और शरीर के अंगो मे सुई चुभोएँ।
प्याज के रस की कुछ बुंदे नाक मे टपकाएँ। नमकीन कोष्ण जल पीकर गले मे उंगली डालकर उल्टी करें।
चिकित्सा---- मन: शिला को अंगारेपर जला कर धुँआ ले,
मयूरपिच्छ भस्म
हिक्कान्तक रस
वृषध्वज रस
चोसठ प्रहरी पिपल
श्रंग्यादि चुर्ण
बडी इलायची का चुर्ण
अपथ्य----- भारी, शीत, उड्द की दाल, मछली, दही, धूल धुँआ, आदी आहार