बुधवार, 17 जून 2009

परिणाम शूल, अम्लपित्त(Hyperacidity, Ulcers)

इस रोग के लक्षण--खट्टी डकारें आना, पेट मे तेजाब बनना, नाभि के ऊपर धीमा धीमा दर्द रहना,और भुखे पेट दर्द का अत्यधिक बढ जाना, कभी कभी दर्द इतना भयंकर होता है कि रोगी को होस्पिटल मे भर्ती होना पडता है ।

आहार विहार पथ्य व्यवस्था-- अपथय- चावल, चने की दाल, चाय, धुम्रपान,मदिरा पान,बार बार खाना,बिना भुख के खाना,
फ़ास्ट फ़ूड, दिन मे सोना,शारिरीक कार्य न करना,मसालेदार व तले हुए भोजन को करना, मानसिक अवसाद आदि
पथ्य------ भोजन मे दुध का प्रयोग करना, सादा खाना, समय पर खाना खाना, फ़लो का सेवन करना,आदि।


आयुर्वेदिक चिकित्सा व्यवस्था-------

अविपित्तकर चुर्ण-- २ ग्रा.
धात्री लौह -- ५०० मि. ग्रा.
सूतशेखर रस---- २५० मि. ग्रा.
शंख भस्म------ २५० मि. ग्रा.
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यह एक मात्रा है , खाना खाने से पहले शहद मे मिलाकर दिन मे दो बार लें।

फ़लासाव---- २० मि. ग्रा. तथा उतना ही ताजा पानी मिलाकर खाना खाने के बाद दो बार

एक महीने तक इस योग का सेवन करें। व पथ्य पालन करें। और इस रोग से जिन्दगी भर के लिये छुटकारा पायें।

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