इस रोग के लक्षण-- पेट के दाहनी ओर तीव्र वेदना, छूने मे असह्य दर्द, जवर और वमन ।
चिकित्सा-- दाना मेथी, अजवाइन सिंधि, असलिया इन चारों को दरड कर दो तोले को आठ गुणा जल मे औटा कर चतुर्थांश शेष रहने पर १ तोला पूरातन गुड मिला कर छान कर पिला दें, भोजन के बाद शंखवटी ५ रत्ती तक पानी से दे । सांय ५ बजे पुनर्नवादि क्वाथ दें ।
प्रलेप-- शूल के स्थान पर जहाँ शोथ नजर आता हो उस पर तज को पीस उस मोटा सा लेप गर्म-२ का कर दो।
प्रात:काल मे लेप करें ।
शनिवार, 30 जनवरी 2010
सोमवार, 11 जनवरी 2010
हरितकी, हरड़ (Terminalia chebula)
हरस्य भवने जाता हरिता च स्वभावत: ।
हरते सर्वरोगांश्च तस्मात् प्रोक्ता हरीतकी ॥
यह मधुरतिक्तक्शाय होने से पित्त, कटुतिक्तक्शाय होने से कफ़ तथा अम्लमधुर होने से वात का शमन करती है ।
इस प्रकार यह त्रिदोष शमन है ।
लवणेन कफ़ं हन्ति पित्तं हन्ति सशर्करा ।
घृतेन वातजाऩ रोगाऩ सर्वरोगाऩ गुडान्विता॥
लवण के साथ प्रयोग करने से यह कफ़ दोष का शमन करती है और शर्करा के साथ प्रयोग करने से यह पित्त दोष का शमन करती है । घी के साथ प्रयोग करने से यह सभी प्रकार के वात रोगॊं पर विजय प्राप्त करती है ।
पाचनसंस्थान पर यह विशेष कार्य करती है , बडी हरड की आपेक्षा छोटी हरड अधिक विरेचन करने वाली होती है , छोटी हरड कॊ घी मे भुन लेने पर उसकी रुक्षता दुर हो जाती है और उसे अपनी प्रकृति के अनुसार अनुपान के साथ लेने से पाचन संस्थान के सभी रोगों को दुर करती है ।
स्रोतो शोधन के लिये हरीतकी से उपर कोइ और औषधि नही है ,
स्वस्थ व्यक्ति यदि इसको ऋतुओं के अनुसार अनुपान बदलकर लेता है तो निश्चय ही वह दीर्घजीवी होता है ।
’ऋतुओं के अनुसार हरड़ का सेवन
वर्षा ऋतु मे ( आषाढ-श्रावण)-------- सैन्ध्व नमक के साथ
शरद ऋतु मे(भाद्रपद-अश्वनी) ------- शर्करा ( मिश्री) के साथ
हेमन्त(कार्तिक-मार्ग्शीर्ष)----------- शुंठी के साथ
शिशिर(पौष-माष) ------ पिपल के साथ
बसन्त(फ़ाल्गुन-चैत्र)---------- मधु के साथ
ग्रीष्म(बैशाख-ज्येष्ठ)----- गुड़ के साथ
प्रयोज्य अंग--फ़ल, मात्रा चुर्ण तीन से छ: ग्राम तक
मंगलवार, 29 दिसंबर 2009
Gall bladder Stone , पित्ताश्मरी,, पित्त की थैली की पथरी
पित्त की थैली की पथरी निदान (रोग का निरधारण ) मुख्य रुप से (USG)और (Murphy's sign) द्वारा होता है , मुख्य रुप से इसमे पेट के दाँए हिस्से मे तेज दर्द या मन्द दर्द होता है , इसके अतिरिक्त खाना खाने के बाद पेट का फ़ुलना, अर्जीण, दर्द, उल्टी आना आदि लक्षण मिलते है।
यदि पथरी ज्यादा बडी है (greater than 11mm ) तो उसका उपचार शल्य क्रिया से उचित है , आयुर्वेद मे पित्ताश्मरी का औषधियों द्वारा उपचार संभव है , जरुरत है तो केवल संयम की ।
पथ्य, अपथ्य व्यवस्था--- विरेचक आहार, सादा व हल्का खाना, मको का शाक, निंबु का रस, संतरे का जुस, परवल की सब्जी सदा ही सेवनीय है ।, तला हुआ भोजन, बार-बार खाना, भारी व विष्टम्भी खाना, रात्रि जागरण, ज्यादा कार्य करना, पेट भर कर खाना आदि इन सब का परहेज रखें ।
योगासन-- १,जानु-स्पृष्ट-भाल-मेरुद्ण्डासन
२. पवन-मुक्तासन
आयुर्वेदिक चिकित्सा-- कुटकी चुर्ण
फ़लत्रिकादि चुर्ण
निम्बू का रस,त्रिकटु चुर्ण
आरोग्य वर्धनी वटी
जैतुन का तैल
विशेष-- रात्रि मे विरेचक औषधि ले और केवल दाईं करवट सोयें ।
अधिक जानकारी के लिये मुझे मेल करें ।
यदि पथरी ज्यादा बडी है (greater than 11mm ) तो उसका उपचार शल्य क्रिया से उचित है , आयुर्वेद मे पित्ताश्मरी का औषधियों द्वारा उपचार संभव है , जरुरत है तो केवल संयम की ।
पथ्य, अपथ्य व्यवस्था--- विरेचक आहार, सादा व हल्का खाना, मको का शाक, निंबु का रस, संतरे का जुस, परवल की सब्जी सदा ही सेवनीय है ।, तला हुआ भोजन, बार-बार खाना, भारी व विष्टम्भी खाना, रात्रि जागरण, ज्यादा कार्य करना, पेट भर कर खाना आदि इन सब का परहेज रखें ।
योगासन-- १,जानु-स्पृष्ट-भाल-मेरुद्ण्डासन
२. पवन-मुक्तासन
आयुर्वेदिक चिकित्सा-- कुटकी चुर्ण
फ़लत्रिकादि चुर्ण
निम्बू का रस,त्रिकटु चुर्ण
आरोग्य वर्धनी वटी
जैतुन का तैल
विशेष-- रात्रि मे विरेचक औषधि ले और केवल दाईं करवट सोयें ।
अधिक जानकारी के लिये मुझे मेल करें ।
मंगलवार, 15 दिसंबर 2009
सुखी खाँसी या एलर्जी वाली खाँसी
प्रमुख लक्षण--वेग के साथ खाँसी का होना, व बलगम का कमआना, हृदयप्रदेश, शिर, पेट, पार्श्व मे वेदना, मुख का स्वाद बदल जाना,स्वरभेद होना, व शरीर का बल व ओज का क्षय होना ।
कारण- रुक्ष शीत व कैषेले पदार्थों का सेवन, अल्पाहार या केवल एक रस वाले द्र्व्यों का सेवन करना, उपवास,अतिमैथुन, अधारणीय वेगों() को धारण करना, धुल, धुआँ आदि का सेवन ।
पथ्य-----वमन, शाली चावल, मूँग,कुलथी, दुग्ध, मुन्नका, अडुसा, सोंठ, मरिच, पीपर, मधु, धान की खील, इलायची, गोमुत्र आदि ।
अपथ्य---दुषित वायु, धुल, धुँआ, अधिक पैदल चलना, भारी खाना, मल-मुत्रादि वेगों को रोकना, शीतल अन्नपान, आदि ।
सामान्य चिकित्सा योग----
सितोपलादि चुर्ण, श्रंग्यादि चुर्ण, टंकण, मुलेठी, द्राक्षारिष्ट, पिप्ल्यासव, कनकासव, बनफ़्सा, लवंगादि वटी, एलादि वटी, वासारस भावित हरिद्रा खण्ड, च्यवनप्राश,अगस्त्य हरितकी, आदि ।
कारण- रुक्ष शीत व कैषेले पदार्थों का सेवन, अल्पाहार या केवल एक रस वाले द्र्व्यों का सेवन करना, उपवास,अतिमैथुन, अधारणीय वेगों() को धारण करना, धुल, धुआँ आदि का सेवन ।
पथ्य-----वमन, शाली चावल, मूँग,कुलथी, दुग्ध, मुन्नका, अडुसा, सोंठ, मरिच, पीपर, मधु, धान की खील, इलायची, गोमुत्र आदि ।
अपथ्य---दुषित वायु, धुल, धुँआ, अधिक पैदल चलना, भारी खाना, मल-मुत्रादि वेगों को रोकना, शीतल अन्नपान, आदि ।
सामान्य चिकित्सा योग----
सितोपलादि चुर्ण, श्रंग्यादि चुर्ण, टंकण, मुलेठी, द्राक्षारिष्ट, पिप्ल्यासव, कनकासव, बनफ़्सा, लवंगादि वटी, एलादि वटी, वासारस भावित हरिद्रा खण्ड, च्यवनप्राश,अगस्त्य हरितकी, आदि ।
शुक्रवार, 11 दिसंबर 2009
सर्दियों मे त्वचा व बालों की देखभाल
सर्दियों मे वात के रुक्ष गुण की अधिकता से शरीर मे रुखे गुण की अधिकता हो जाती है जिसके कारण बालॊ मे रुसी (Dandruff) और त्वचा का रुखापन अधिक हो जाता है ।
आयुर्वेद मे इन जैसी परिस्थितियॊं का सामना करने के लिये शीत ऋतुचर्या मे एक विशेष आहार-विहार का वर्णन किया गया है । शीत ऋतु मे बाहर की सर्दी अपने शरीर की ऊष्मा को शरीर के अन्दर धकेल कर जठराग्नि(Digestion) को प्रदिप्त कर देती है , जिसके कारण भुख अधिक लगती है अत: इस ऋतु मे शरीर गुरु आहर(Heavy Diet) पचाने मे समर्थ होता है ।
सर्दियों मे चिकने पदार्थ,अम्ल, लवण रस युक्त आहार, मांसाहार , दुध के बने आहार , नये चावल से बना भात, व अनुपान के रुप मे शहद या मदिरा लेना हितकर है ।
विहार- तेल मालिश, बादम तैल, तिल तैल, नारियल तैल आदि की धुप मे बैठकर मालिश करे और त्रिफ़ला चुर्ण से शरीर को रगडें, उसके बाद कोष्ण जल मे स्नान करें।
चेहेरे पर ताजे दुध के झाग लेकर उसमे सुक्ष्म लोध्र चुर्ण मिलाकर चेहेरे पर धीरे धीरे हल्के हाथों से स्क्रब करें, यह एक कुरुरती स्क्र्ब का काम करेगा और चेहेरे की रुक्षता को दुर करेगा तथा एक विशेष चमक चेहेरे पर लाएगा।
बालों की रुक्षता दूर करने के लिये बालॊं को ग्वारपाठे के रस से रगड्ने के बाद बालॊं को गर्म पानी से धो दें , या लस्सी मे त्रिफ़ला चुर्ण मिलाकर बालों को धोएँ, या सरसॊ का तैल एक चमच , सुहागा आधा चमच और निंबु का रस दो चमच इन सब को मिलाकर धुप मे बालॊ पर रगडें और एक घन्टे बाद शैम्पु से बालो को धो ले , इससे बालॊ की रुसी(Dandruff) से छुटकारा मिलेगा ।
आयुर्वेद मे इन जैसी परिस्थितियॊं का सामना करने के लिये शीत ऋतुचर्या मे एक विशेष आहार-विहार का वर्णन किया गया है । शीत ऋतु मे बाहर की सर्दी अपने शरीर की ऊष्मा को शरीर के अन्दर धकेल कर जठराग्नि(Digestion) को प्रदिप्त कर देती है , जिसके कारण भुख अधिक लगती है अत: इस ऋतु मे शरीर गुरु आहर(Heavy Diet) पचाने मे समर्थ होता है ।
सर्दियों मे चिकने पदार्थ,अम्ल, लवण रस युक्त आहार, मांसाहार , दुध के बने आहार , नये चावल से बना भात, व अनुपान के रुप मे शहद या मदिरा लेना हितकर है ।
विहार- तेल मालिश, बादम तैल, तिल तैल, नारियल तैल आदि की धुप मे बैठकर मालिश करे और त्रिफ़ला चुर्ण से शरीर को रगडें, उसके बाद कोष्ण जल मे स्नान करें।
चेहेरे पर ताजे दुध के झाग लेकर उसमे सुक्ष्म लोध्र चुर्ण मिलाकर चेहेरे पर धीरे धीरे हल्के हाथों से स्क्रब करें, यह एक कुरुरती स्क्र्ब का काम करेगा और चेहेरे की रुक्षता को दुर करेगा तथा एक विशेष चमक चेहेरे पर लाएगा।
बालों की रुक्षता दूर करने के लिये बालॊं को ग्वारपाठे के रस से रगड्ने के बाद बालॊं को गर्म पानी से धो दें , या लस्सी मे त्रिफ़ला चुर्ण मिलाकर बालों को धोएँ, या सरसॊ का तैल एक चमच , सुहागा आधा चमच और निंबु का रस दो चमच इन सब को मिलाकर धुप मे बालॊ पर रगडें और एक घन्टे बाद शैम्पु से बालो को धो ले , इससे बालॊ की रुसी(Dandruff) से छुटकारा मिलेगा ।
मंगलवार, 8 दिसंबर 2009
प्लीहा वृद्धि, तिल्ली का बढना(Spleenomegaly)
प्रखुम लक्षण--मंद ज्वर या सर्दी के साथ ज्वर, पेट मे दर्द खासकर बांए हिस्से मे , अरोचकता, क्षुधानाश,मल मुत्रावरोध,वमन, दम फ़ुलने लगता है, शरीर कमजोर हो जाता है ।
आहार-विहार व्यवस्था-- पथ्य- साठी चावल,जॊ,मुंग,दुध, गोमुत्र,आसव, अरिष्ट, शहद
अपथ्य-मांसाहार,पत्तेदार शाकसब्जीयां,अम्ल्पदार्थ,विदाही अन्न, भारी खाना, अधिक जल पीना आदि,
व्ययाम करना, अधिक पैदल चलना, सवारी करना, दिन मे सोना आदि बिल्कुल भी न करें ।
आयुर्वेदिक चिकित्सा -- विरेचन, रक्तमोक्षण,क्षार और अरिष्टों का सेवन
सामन्य चिकित्सा- कुमार्यासव
कालमेघासव
निम्बुक द्राव
हिन्गुद्राव
पलाश पंचांग क्षारभस्म
रोहितिकारिष्ट
लोकनाथ रस, आरोग्यवर्धनी वटी, सुदर्शन चुर्ण, कुटकी चुर्ण, अर्क मको,
आहार-विहार व्यवस्था-- पथ्य- साठी चावल,जॊ,मुंग,दुध, गोमुत्र,आसव, अरिष्ट, शहद
अपथ्य-मांसाहार,पत्तेदार शाकसब्जीयां,अम्ल्पदार्थ,विदाही अन्न, भारी खाना, अधिक जल पीना आदि,
व्ययाम करना, अधिक पैदल चलना, सवारी करना, दिन मे सोना आदि बिल्कुल भी न करें ।
आयुर्वेदिक चिकित्सा -- विरेचन, रक्तमोक्षण,क्षार और अरिष्टों का सेवन
सामन्य चिकित्सा- कुमार्यासव
कालमेघासव
निम्बुक द्राव
हिन्गुद्राव
पलाश पंचांग क्षारभस्म
रोहितिकारिष्ट
लोकनाथ रस, आरोग्यवर्धनी वटी, सुदर्शन चुर्ण, कुटकी चुर्ण, अर्क मको,
शुक्रवार, 6 नवंबर 2009
हिक्का रोग, हिचकी,
जब प्राण वायु प्रकुपित होकर हिक हिक की ध्वनि करती हूई गले से निकलती है तो उसे हिचकी कहते हैं ।
सचमुच यह रोग बहुत ही दुखदाई होता है , किसी भी वक्त हिचकी का दोरा शुरु हो जाता है और बहुत देर तक लगातार हिचकी आती रहती हैं ।
कारण- जल्द बाजी मे भोजन करना, विदाहीअन्न, गुरु, रुक्षाहार, शीतल स्थान, धूल धुँआ, तेज हवा, शक्ति से अधिक काम करना, मल मुत्र आदि के वेगों को रोकना, विषम भोजन, मर्म स्थान पर चोट लगना, और शीत और उष्ण का एक साथ संपर्क होना आदि।
आधुनिक चिकित्सा मे इसके दो मुख्य कारण, पाचन संस्थानगत विकृति और वातनाडी संस्थान विकृति को माना गया है।
आहार विहार व्यवस्था-- कारणो का पुर्ण परित्याग करें। कुम्भक प्राणायाम , उष्ण और लघु आहार का सेवन, अचानक मुख पर शीतल जल के छिटं दे। और शरीर के अंगो मे सुई चुभोएँ।
प्याज के रस की कुछ बुंदे नाक मे टपकाएँ। नमकीन कोष्ण जल पीकर गले मे उंगली डालकर उल्टी करें।
चिकित्सा---- मन: शिला को अंगारेपर जला कर धुँआ ले,
मयूरपिच्छ भस्म
हिक्कान्तक रस
वृषध्वज रस
चोसठ प्रहरी पिपल
श्रंग्यादि चुर्ण
बडी इलायची का चुर्ण
अपथ्य----- भारी, शीत, उड्द की दाल, मछली, दही, धूल धुँआ, आदी आहार
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ (Atom)