सोमवार, 15 जून 2009

फलघृतं बन्ध्यादोषे

फलघृत स्त्री और पुरूष दोनो के लिये बहुत ही उपयोगी होता है। सन्तान की इच्छा रखने वाले स्त्री और पुरुष दोनो को इसका प्रयोग करना चाहिये । इसके पीने से वीर्य की वृद्दि होती है तथा बुद्दिमान पुत्र की उत्त्पति होती है । जो स्त्री कम आयु वाले स्न्तान उत्प्न्न करती है या जो एक बार संतानोत्पत्ति करके के बाद पुन: दुसरी संतान उत्प्न्न नही कर सकती वह भी इसके प्रयोग से बुद्दिमान और सॊ वर्ष आयु का पुत्र प्राप्त करती है ।



फल घृतपान के नियम---सिद्ध घृत हो जाने पर इस घृत को मिट्टि या तांबे के बर्तन मे शुभ तिथि , पुष्य नक्षत्र मे रख देते हैं, इस घृत को शुभ तिथि मे जब पुष्य नक्षत्र हो तब स्त्री और पुरुष दोनो को १० से १२ ग्रा. दिन मे दो बार गाय के
दुध के साथ पान प्रारम्भ कर देना चाहिये ।


फलघृत के मुख्य घटक द्रव्य---गोघृत, त्रिफ़ला, दारुहल्दी, कुटकी, विडंग,मोथा,इंद्रायण,वचा,महामेदा,काकोली,क्षीरकाकोली,अन्नतमूल,प्रियंगु के फूल,कमल,श्वेत चन्दन,मालती के फूल,दन्तीमूल आदि।

फलघृत प्रचलित कम्पनियों द्वारा बना बनाया भी बाज़ार मे उपल्ब्ध है ।
(शा.सं.म.)

गुरुवार, 11 जून 2009

दान्त और मसूडो पर वर योग

आधुनिक जीवन स्तर और भागदौड भरी जिन्दगी मे दान्तो की समस्याएं भी वैसे ही फ़ास्ट चल रही है जैसे की हम ।
आयुर्वेद मे दान्तो और मसुडो के बहुत ही योग मोजुद है , उनमे से मै एक सरल और परिक्षित योग यहाँ पेश कर रहा हुँ , आशा है आपके लिये यह फ़ायदेमंद होगा।


अपामार्ग पांचांग भस्म- २० ग्रा.
त्रिफ़ला भस्म= ५ ग्रा.
माजुफ़ल--------- ५ ग्रा.
नमक--------------२.५ ग्रा.
फ़िटकरी भस्म-------२.५ ग्रा.
त्रिफ़ला चुर्ण---------५ ग्रा
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इन सभी को अच्छी तरह मिलाकर अच्छी तरह बारीक मर्दन करके किसी शीशी मे रख ले । बस आपका मंजन तैयार है । प्रचलित दन्त्मन्जन की जगह इसकॊ प्रयोग करे और अपने दांतो और मसुडो की समस्याओं से छुटकारा पाएं ।

सोमवार, 1 जून 2009

ग्रहणी रोग, बार-बार मल त्याग होना,(IBS) (Amoebiasis,Dysnetry), ()

आहार एवं विहार--दु्ध का सेवन मत करे, दही या लस्सी को आहार मे ज्यादा ले , लस्सी मे भुना हुआ जीरा डालकर और काला नमक डालकर ले , खाना खाने से पहले घी की एक या दो चमच ले ( यदि आप शारिरीक कार्य करते है तो ले वरना मत ले)खाना खाने के एकदम बाद पानी मत पीयें ।
आहार मे फ़लो का ज्यादा प्रयोग करे। और बे्ल का मु्रब्बा सदा ही हितकर होता है । तले हुए भोज्य पदार्थ और फ़ास्ट फ़ुड को सदा के लिये बाय बाय कर दे ।
साधारण और असरकारी आयुर्वेदिक चिकित्सा==
अविपत्तिकर चुर्ण= आधा चमच खाना खाने से पहले दो बार
वत्सकादि क्वाथ घन ५०० मि. ग्रा.
कुटकी चुर्ण १५० मि. ग्रा.
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खाने के बिल्कुल बीच मे ताजे पानी के साथ दिन मे एक बार( ।

हिंगवष्टक चुर्ण-- आधा चमच खाना खाने के बाद कोष्ण जल के साथ दो बार

बुधवार, 27 मई 2009

रक्तज अर्श या खुनी बवासीर (Bleeding Piles)

आहा्र-विहार व्यवस्था-- खाने मे मिरच, तैलीय पदार्थ, गरिष्ठ भोजन, भारी भोजन, बार बार खाना, तले हुए भोज्य पदार्थ , इन सब से परहेज रखें। यदि कब्ज अधिक रहती है तो भोजन मे सलाद ज्यादा ले, पपीत , मोसमी फ़ल, आदि भी लाभकारी रहते है । मोटे आटे की रोटियों का प्रयोग करें, भोजन मे ज्यादा से ज्यादा लस्सी या दही का प्रयोग करे और यदि बार बार पाखने की शिकायत रहती है तो दुध का प्रयोग बन्द कर दे । पाखाना करते समय ज्यादा जोर मत लगाये ।


चिकित्सा व्यवस्था--
१ अविपत्तिकर चुर्ण- आधा चमच खाना खाने से पहले दो बार ॥
२ ईसबगोल चुर्ण- रात को कोष्ण दुध या पानी के साथ एक चमच
३ अभयारिष्ट २० मि. लि. और समान मात्रा मे जल मिलाकर खाना खाने के बाद दिन मे दो बार
४ शुद्ध रसांजन ४मि. ग्रा. शु्द्ध स्वर्ण गै्रिक २५० मि. ग्रा. और कुकरोंधा का रस मिलाकर गोली बना ले ,  एक एक गोली दिन मे दो बार ताजे पानी के साथ या लस्सी के साथ ले ।
 स्थानिक प्रयोग मे ,- शोच निवृति के बाद रसांजन को पानी मे घोल कर  उस के साथ गुदा का प्रक्षालन करे ।

रविवार, 24 मई 2009

(फ़ेलोपियन टुयुब ब्लोकेज को ठीक करने के अयुर्वेदिक तरीके) Steps to unblock Fallopian tubes blockage in ayurveda

आयुर्वेद प्राचीन समय से असाध्य रोगों मे बहुत ही असरकारी रही है । स्त्रीयों के बन्ध्यत्व मे टयुब बलोकेज एक मुख्य कारण है , जिसका कोई भी इलाज मोडरन चिकित्सा प्रणाली मे  सफ़ल नही है , हालांकि शल्य कर्म का सहारा लिया जा सकता है किन्तु उसमे मे भी कोई गारन्टी नही होती कि शल्य कर्म से ट्युब ब्लोकेज ठीक हो जाए ।

 ट्युब ब्लोकेज क्यों होती है ----इसके व्यापक कारण होते है मुख्य रुप से निम्न्लिखित कारण है ।
 १ जन्मजात
२ आघात के कारण
४, इन्फ़ेक्सन के कारण
५.केल्सियम जमा होने के कारण
६ पेलविक शोथ जन्य रोगों  के कारण
७ डिम्ब वाहिनि मे अर्बुद( out growth, cysts cancer etc) होने के कारण
  

आयुर्वेद चिकित्सा कैसे  ब्लोकेज को ठीक करती है ---
१ फ़ेलोपियन ट्युब के शोथ को ठीक करके।
२ इन्फ़ेक्सन को दूर करके ।
३ गर्भाशयगत अंगो का विकास करके और उनको स्वस्थ करके।
४, ट्युब मे हुई व्रणवस्तु(scar ) को मृदु करके उसको दुर करता है और वाहिनि को स्निग्ध करता है ।
 
आयुर्वेदिक चिकित्सा व्यवस्था--
१ स्थानिक: विभिन्न आयुर्वेदिक औषधियों का लेप और पिचु धारण (tampons and douches)-

२ खाने के लिये आयुर्वेदिक औषधियाँ ।

३योग एवं आसन

४ पंचकर्म - उत्तर बस्ति , स्नेहन, स्वेदन आदि

५आहार एवम विहार

अधिक जानकारी के लिये आप मुझे संपर्क कर सकते है ।


सोमवार, 27 अप्रैल 2009

मधुमेह यानि डायबेटीज

जौ, कंगुनि,सावां, आदि धान्यों से बनी विविध प्रकार के भोज्य वस्तुएँ लाभ प्रद रहती है । जौ का दलिया या आटे की रोटी बना कर लेना चाहिये। लगातार कई महीनो तक सेवन करने के बाद ही यह अपना पर्याप्त लाभ दिखाता है ।यह रक्तगत शर्करा को और स्थुलता को भी कम करता है ।
   भुने हुए अन्न प्रचुर मात्रा मे प्रयोग करने चाहिये , यदि दांत मजबुत है तो भुने हुए अन्न जैसे कि चनो को चबा चबा कर खाने चाहिये और यदि दांत कमजोर है तो सत्तु बना कर प्रयोग करना चाहिये।

मधुमेह के रोगियों के लिये लस्सी एक बहुत ही उपयुक्त पेय है  इसको जितना प्रयोग कर सकते हो तो करो ।
जितना व्ययाम कर सको उतना करो । हर रोज शरीर की मालिश करने के बाद स्नान करना भी बहुत ही लाभकारी है ।
   
        य तो थी आहार विहार की बात , आयुर्वेदिक औषधियों मे , शिलाजीत, सुदर्शन चुर्ण, चिरायता, गिलोय , करन्ज बीज चुर्ण और अश्वगन्धा चुर्ण, बसन्त कुसुमाकर रस, मेथी दाना, जामुन के बीज, मामजक, विजयसार की लकडी, डोडी पनीर, आदि बहुत सारी औषधियाँ वैद्य की सलाह से प्रयोग करें ।

बुधवार, 22 अप्रैल 2009

ग्रीष्म ऋतु आहार विहार

आयुर्वेद एक चिकित्सा पद्दति होने के साथ साथ एक जीवन दर्शन भी है । हमारे आचार्यों ने  ऋतुऒं के अनुसार आहार विहार
का बहुत ही अच्छा वर्णन किया गया है । आज कल गरमी जोरों पर है । इस काल मे हमारे आचार्य क्या कहते है यह देखेते है _
 ग्रीष्म ऋतु --दो महीने यानि बैशाख और जयेष्ठ को ग्रीष्म ऋतु माना गया है । राशि के हिसाब से वृष और मिथुन राशि मे जब सुर्य होता है तो वह काल ग्रीष्म काल होता है ।

   ग्रीष्म ऋतु मे  अति तीक्ष्ण किरणों वाला सूर्य संसार से स्नेह को नष्ट करता है ; जिससे प्रतिदिन मनुष्यों मे श्लेष्मा ( कफ़) घटता है और वायु बढती है इसलिये इस ऋतु मे नमक, कटु,तथा अम्ल रस, व्ययाम, और सूर्य की किरणो का त्याग करना चाहिये॥ ( अ० ह्रु०)
सेवनीय- मधुर , लघु, स्निग्ध, और शीतल एवं द्रव पदार्थ।
अतिशय शीतल जल से स्नान करना और जॊ से बने सत्तु को खाना।
 असेवनीय--  मद्य का सेवन, ( यदि करना है तो भरपुर पानी मिलाकर करें) , घन मांस रस ( गाढा मास का सूप) या रुक्ष मांस, और मैथुन कर्म का सेवन मत करे
 
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