शुक्रवार, 17 जुलाई 2009

वातरक्त,गठिया बाय,Gout,serum uric acid का बढना

जब शरीर के अंगोकी संधियों मे अचानक तीव्र वेदना तथा शोध उत्पन्न हो जावे तो वातरक्त का संकेत मिलता है ,सामान्यतया यह पैर के अंगुठे से शुरु होता है ,
पादयोर्मूलमास्थाय कदाचित्दस्तयोरपि ।
आखोर्विषमिव क्रुद्दं तदेहमुपसर्पति ॥
आधुनिक चिकित्सा मे इस रोग को गाऊट रोग से सामानता की गई है, जिसमे युरीक एसिड बढा मिलता है ।

आयुर्वेदिक चिकित्सा कर्म--- रक्त मोक्षण, विरेचन, आस्थापन तथा तिक्त स्नेह पान ।

अनुभूत आयुर्वेदिक चिकित्सा-- शरीर का शोधन करने के बाद नवकार्षिक पान-
नवकार्षिक--- त्रिफ़ला, नीम, मंजीठ, वच, कुटकी, गुडुची,तथा दारू हलदी , सभी समान मात्रा मे -
मात्रा - २ ग्रा या आधा चमच सुबह खाना खाने के १ घन्टा बाद ताजे पानी के साथ।
अपथ्य- पनीर, मटर, दालें, आदि प्रोटीन युक्त आहार , रुक्ष आहार, तली हुए भोज्य पदार्थ आदि।
यह योग लगातार कई महीनो तक सेवन करने पर ही असर करता है ।

सोमवार, 6 जुलाई 2009

हृदय रोग ( all types of heart diseases)

कारण- निरन्तर अत्यधिक ऊष्ण ( मदिरा, अमिष भोजन, मसाले दार तला हुआ भोजन), या अत्यधिक गुरु( भारी खाना, अधिक खाना,) श्रम, आघात, अध्यशयन( बार-बार खाना) , अधिक चिन्तन करने से , तथा अधारणीय वेगो(Natural Urges ) के धारण करने से पांच प्रकार का हृदय रोग उत्पन्न होता है ।


अपने कारणो से प्रकुपित हुए वातादि दोष रस को दुषित करके ( रस हृदय का आधार होता है ) हृदय मे सिथत होकर उसमे विकार उत्पन्न कर के हृदय रोगो की उत्पत्ति करते है ।
रस अपने शरीर की प्रथम धातु है , इसका सीधा सम्बन्ध अपने आहर से है , आहार से सर्वप्रथम रस की ही उत्पत्ति होतीहै , अत: हृदय रोग मुख्य रुप से खान पान मे मिथ्यायोग के कारण होता है । तो आहार मे बदलाव लाना बहुत ही जरुरी है ।
सभी प्रकार के हृदय रोगों मे दुध, दही , गुड , और घी, आदि वस्तुओं को छोड देना चाहिये।
जौ के सत्तु हदय रोग मे बहुत ही पथ्य होते है ।
सभी प्रकार के हृदय रोगों मे सामान्य आयुर्वेदिक चिकित्सा----पुष्करादि क्वाथ-- पुष्करमुल, बीजपुर मुल, प्लाश त्वक, पूतीक, कर्चूर, नागबला और देवदारू सभी समान मात्रा मे लेकर यथा विधि क्वाथ बना लेते है २० से २५ मि. लि. कि मात्रा मे सुबह शाम लेते है , और साथ मे प्रभाकर वटी १ और अर्जुनत्वक्घन वटी २ क्वाथ के साथ लेते है
योग तीन महीने बाद अपना असर दिखाता है ।

शनिवार, 4 जुलाई 2009

बालोँ का झड़ना,उड़ना,सफेद होना!

युँ तो बालोँ का उड़ना या सफेद होना अनुवाँशिक होता है लाकिन आधुनिक जीवन
शैली से भी बालोँ की स्मस्याएँ पैदा होती है| सबसे पहले तो साबुन शैम्पु
का प्रयोग बंद कर दे बाल धोने के लिये लस्सी और बेसन का प्रयोग करेँ;
खाने मे दुध और हरी सब्जीयोँ का ज्यादा प्रयोग करेँ| आयुर्वेदिक
चिकित्सा- लगाने के लिये- भृङ्गराज तैल और पंचतिक्त
घृत दोनोँ मिलाकर दिन मे एक बार; खाने के
लिये-प्रवाल पिष्टी-250 मि ग्रा धात्री लौह-250 मि ग्रा पीने
के लिये भृंगराजासव खाना खाने के बाद;

सोमवार, 29 जून 2009

शीतपित्त, पित्ति उछलना (Urticaria)

शीतल वायु के स्पर्श से कफ़ तथा वायु प्रकुपित होकर पित्त मे मिलकर बाहर त्वचा पर तथा आन्तरिक रक्त आदि धातुओं मे फ़ैलकर शीत पित्त रोग को उत्पन्न करती है ।

शीत पित्त मे त्वचा पर भिड. , ततैया, के काटने जैसे शोथ युक्त लाल चकते दिखाई पडते है ,जिनमे अत्यधिक खुजली और जलन होती है ।

आधुनिक चिकित्सा विग्यान मे इसकॊ एलर्जी से उत्पन्न माना जाता है । आयुर्वेद मे यह रोग आमाशय से उत्पन्न माना जाता है ।

आयुर्वेदिक चिकित्सा---
अजवायन २ ग्रा. और उतना ही पुराना गुड मिलाकर गोलिया बना लो , इनको दिन मे दो या तीन बार ताजे पानी के साथ ले।

हरिद्रा खण्ड ----- दो दो चमच दिन मे दो बार ताजे पानी के साथ ।

सुतशेखर रस- २५० मि. ग्रा.
धात्री लोह --- २५० मि. ग्रा.
अविपत्तिकर चुर्ण-- २ ग्रा.
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खाना खाने से पहले दो बार
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सारिवद्यासव--- २० मि. लि. तथा उतना ही जल मिलाकर
---------- खाना खाने के बाद दो बार।

इन योगों को लगातार ३० दिनों तक सेवन करे और रोग से सदा के लिये छुटकारा पायें।

शनिवार, 27 जून 2009

गर्भिणी परिचर्या (Ante natal care)

आयुर्वेद मे गर्भवती स्त्री के लिये एक मापक आहार,विहार और औषध का वर्णन
किया गया है इसी को गर्भिणी परिचर्या का नाम दिया गया है | यदि इसका
अनुपालन किया जाता है तो भविष्य मे होने वाले विभिन्न रोगोँ जैसे
गर्भस्राव,पात,शूल,गर्भ का विकास न होना,सीजेरियन डिलिवरी आदि उपद्रवोँ
से बचा जा सकता है| यह परिचर्या बहुत ही आसान और युगानूरुपी
है,आसानी से इसे अपनाया जा सकता है|
अधिक जानकारी के लिये आप मुझे मेल कर सकते है|

बुधवार, 17 जून 2009

परिणाम शूल, अम्लपित्त(Hyperacidity, Ulcers)

इस रोग के लक्षण--खट्टी डकारें आना, पेट मे तेजाब बनना, नाभि के ऊपर धीमा धीमा दर्द रहना,और भुखे पेट दर्द का अत्यधिक बढ जाना, कभी कभी दर्द इतना भयंकर होता है कि रोगी को होस्पिटल मे भर्ती होना पडता है ।

आहार विहार पथ्य व्यवस्था-- अपथय- चावल, चने की दाल, चाय, धुम्रपान,मदिरा पान,बार बार खाना,बिना भुख के खाना,
फ़ास्ट फ़ूड, दिन मे सोना,शारिरीक कार्य न करना,मसालेदार व तले हुए भोजन को करना, मानसिक अवसाद आदि
पथ्य------ भोजन मे दुध का प्रयोग करना, सादा खाना, समय पर खाना खाना, फ़लो का सेवन करना,आदि।


आयुर्वेदिक चिकित्सा व्यवस्था-------

अविपित्तकर चुर्ण-- २ ग्रा.
धात्री लौह -- ५०० मि. ग्रा.
सूतशेखर रस---- २५० मि. ग्रा.
शंख भस्म------ २५० मि. ग्रा.
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यह एक मात्रा है , खाना खाने से पहले शहद मे मिलाकर दिन मे दो बार लें।

फ़लासाव---- २० मि. ग्रा. तथा उतना ही ताजा पानी मिलाकर खाना खाने के बाद दो बार

एक महीने तक इस योग का सेवन करें। व पथ्य पालन करें। और इस रोग से जिन्दगी भर के लिये छुटकारा पायें।

सोमवार, 15 जून 2009

फलघृतं बन्ध्यादोषे

फलघृत स्त्री और पुरूष दोनो के लिये बहुत ही उपयोगी होता है। सन्तान की इच्छा रखने वाले स्त्री और पुरुष दोनो को इसका प्रयोग करना चाहिये । इसके पीने से वीर्य की वृद्दि होती है तथा बुद्दिमान पुत्र की उत्त्पति होती है । जो स्त्री कम आयु वाले स्न्तान उत्प्न्न करती है या जो एक बार संतानोत्पत्ति करके के बाद पुन: दुसरी संतान उत्प्न्न नही कर सकती वह भी इसके प्रयोग से बुद्दिमान और सॊ वर्ष आयु का पुत्र प्राप्त करती है ।



फल घृतपान के नियम---सिद्ध घृत हो जाने पर इस घृत को मिट्टि या तांबे के बर्तन मे शुभ तिथि , पुष्य नक्षत्र मे रख देते हैं, इस घृत को शुभ तिथि मे जब पुष्य नक्षत्र हो तब स्त्री और पुरुष दोनो को १० से १२ ग्रा. दिन मे दो बार गाय के
दुध के साथ पान प्रारम्भ कर देना चाहिये ।


फलघृत के मुख्य घटक द्रव्य---गोघृत, त्रिफ़ला, दारुहल्दी, कुटकी, विडंग,मोथा,इंद्रायण,वचा,महामेदा,काकोली,क्षीरकाकोली,अन्नतमूल,प्रियंगु के फूल,कमल,श्वेत चन्दन,मालती के फूल,दन्तीमूल आदि।

फलघृत प्रचलित कम्पनियों द्वारा बना बनाया भी बाज़ार मे उपल्ब्ध है ।
(शा.सं.म.)