शनिवार, 5 फ़रवरी 2011

रसोन क्षीर पाक ! आप के लिये बहुत ही जरुरी ।

रसोन क्षीर  पाक क्या है ?  रसोन पाक कुछ नही बल्कि लहशुन से पकाया हुआ दूध है ।
मेरे लिये यह क्यों जरुरी है-
क्या आपको हृदय रोग यानि कोलेस्ट्रोल बढा हुआ है  , क्या आपका युरिक एसिड बड़ा हुआ है (गाउट) , क्या आप एसिडिटी से परेशान है । क्या पेट मे गैस बनती है ।  क्या आपको बादी की बवासीर है ? , क्या आपकी कामेच्छा कम हुई है ? क्या आपका ब्ल्ड प्रैशर कम या ज्यादा रहता है ? ,क्या आपके जोड़ों मे दर्द है । क्या आप ज्यादा देर बैठते हो और मानसिक कार्य ज्यादा करते हैं ?
क्या आपकी कमर मे दर्द रहता है ? , क्या आपकी एक टांग मे दर्द रहता है ?
यदि  हाँ
तो मै समझता हूँ कि आपको रसोन क्षीर पाक की सख्त जरुरत है ।
लहसून की उत्पत्ति --  जिस समय गरुड ने इन्द्र के पास से अमृत हरण किया था उस समय  जो अमृत धरती पर बुन्दॊ के रुप मे गिरा , उसी से लहसून की उत्पत्ति हुई  ।

लहसून साक्षात अमृत तुल्य है । इसका सदा सेवन कीजिये ।

लशुन दोषों का उत्सारक, मेधा का प्रसारक, निर्बलता का संहारक, कफ़ का छेदक, वात का भेदक, भग्न अस्थियों का संमेलक, रक्तवर्धक तथा पित्त का प्रेरक है । लभु होता हुआ भी औषधियों का गुरु है । इन अनेक विध गुणो से युक्त लशुन मे , हे विधाता !! तू ने न जाने क्यों यह दुर्गंध दोष रख दिया है ? (सि. भै. म. मा. )
जिनको रक्तपित्त की प्रवृति है बस उन लोगो को छोड कर और गर्भवती को छोड़ कर लगभग सभी को लहसून का सेवन करना चाहिये ।
लशुन का दुध मे पकाकर ही क्यो सेवन करें ???
लशुन बहुत ही गरम और तीक्ष्ण होता है , बस दूध मे पकाकर इसकी उष्णता और तीक्ष्णता कुछ कम हो जाती है । और  बस आप शुरु तो किजीये !
कैसे बनाएं रसोनक्षीर पाक ??
घर मे जो लशुन होता है उसकी कलियो कॊ छील लिजीये  लशुन की पोथी मे से एक एक कली छीळ लिजिये और पहले दिन३ कलियों को अच्छी तरह पीस कर  अपनी इच्छानुसार दूध लेकर और उसमे उतना ही पानी लेकर कम आंच पर उबलना शुरु करे जब दूध शेष रहे तो छान कर पी लिजिये ।
अपनी इच्छानुसार हर रोज इसमे एक कली बडाते रहिये और  दूध को पीते रहिये  । आप १० कलियों तक बड़ाएं और उसके बाद फ़िर एक एक कम करते चले । बस यही रसोन क्षीर पाक है ।
रसोन क्षीरपाक पीते रहिये और सदा के लिये जवान बने रहें ।
अधिक जानकारी के लिये आप मुझे मेल कर सकते हैं ।

सोमवार, 10 जनवरी 2011

Piles (Haemorrhoids) and astrology. अर्श रोग ( बवासीर ) का ज्योतिष से संबंध और उपचार

मनुष्य की कुण्डली मे १२ भाव होते हैं जिसमें प्रथम, षष्ठ, और अष्टम भाव बहुत ही महत्वपूर्ण है । प्रथम भाव से स्वास्थ्य, शरीर का वर्ण आदि और छठे भाव से रोग का मालूम होना आदि और आठवें भाव मे मृत्यु आयु का पता लगाते हैं । छठे भाव को रोग का भाव भी कहा है । यहाँ पर कुण्डली के अनुसार केवल बवासीर का उदारहण दिया जा रहा है ।
कुण्डली मे कौन कौन से ग्रह अर्श रोग को उत्पन्न करते हैं यह बताया जा रहा है --
  1. "मन्देन्त्ये पाप दृष्टेर्शस:"-- बारहवें भाव मे शनि पाप ग्रह से दृष्ट हो तो अर्श रोग होवे ।
  2. मन्दे लग्ने कुस्ते॓Sर्श:स: -- शनि लग्न मे और मंगल सातवें भाव मे हो तो अर्श रोगी होवे ।
  3. द्यूनेरंध्रेशे क्रूरे शुक्रादृष्ते: अर्श: स: -- अष्टमेश क्रूर ग्रह होकर सातवें भाव मे गया हो और शुक्र ग्रह से दृष्ट न हो तो अर्श रोगी होवे ।
  4. मंदेस्तेलौ भौमेंक: अर्शर्स: -- शनि सप्तम भाव मे और वृशिचक राशी का  मंगल नवे भाव मे गया हो तो अर्श रोगी होवे ।
  5. मंदेन्त्ये ड्नूनगौ लग्नपोरौ अर्शर्स: -- शनि बारहवें भाव और लग्नेश व मंगल ये दोनों सप्तम भाव मे गये हो तो अर्श रोग होवे ।
  6. व्ययेर्कजे भौमांगेश्दृश्टे: अर्श: स: -- १२ वे भाव मे गया हुआ शनि, मंगल से और लग्नेश से दृष्ट हो तो अर्श रोग होगा ।
यदि शनि देव जन्म से कुण्डली  मे लग्न मे होवे और सातवें भाव मे मंगल  देव विराजमान है तो अर्श का रोग होगा । ज्योतिष मे यह स्पष्ट लिखा है । 
यदि शनिदेव सप्तम भाव मे है और नवें भाव मे वृशिचक राशि मे उसी मे मंगल देव विराजमान है तो अर्श का रोग होगा ।
ज्योतिष मे ऎसा स्पष्ट निर्देश है । ज्योतिष आयुर्वेद की पैथोलोजी की तरह है  जैसे आधुनिक डाक्टर विभिन्न लैब टैस्ट करवाते है और रोग का निदान करते है ,उसी तरह आयुर्वेद वैद्य ज्योतिष का साहरा लेकर रोग  का निदान करते हैं ।

ज्योतिष के अनुसार अर्श रोग की चिकित्सा --
अष्ट धातु की बनी हुई अंगुठी को बनवाकर जिस हाथ से शौच धोवें  उसी हाथ की अंगुली मे पहन लेवें और शौच को धोते समय वह अंगूठी गुदा के छूते रहना चाहिये । 
लाल अपामार्ग के बीज को तवे पर धीमी आंच से जला लेवें और उस जली हुई भस्म को ठण्डी करके  उसमें गाय का शुद्ध घृत मिला लेवें तथा काजल बना ले ।इस काजल को प्रात: काल शौच आदि से निवृत होकर आंखों मे आंजे और रात्रि काल मे भी आंजे ।  एसा करने से अर्श रोग से छुटकारा मिल जाएगा ।
साथ मे शनिदेव और मंगल देव का जाप भी करें ।

मंगलवार, 14 दिसंबर 2010

Polycystic Ovarian disease (PCOD ) महिलाओं मे infertility का मुख्य कारण

  • पी सी ओ डी एक आधुनिक युग की देन है । दुर्भाग्य से जो समय महिलाओ मे सन्तान पैदा करने का होता है , वही समय उनके कैरियर बनाने का होता है । अपने कैरियर को बनाने की होड़ मे वो इस समय मे यानि १८ से २९ साल की उम्र मे सन्तान पैदा नही करती है । और जब सन्तान पैदा करने की इच्छुक होती है तो समय निकल जाता है । समय पर सन्तान पैदा न होने के कारण और आधुनिक लाईफ़ स्टाईल जीने से और क्षुब्ध मानसिक परिस्थितियों से अनेक रोगों का जन्म होता जिनमे से पी सी ऒ डी एक है, यह रोग मासिक धर्म की अनियमितता से और स्वभाविक अण्डा पैदा न होने से जुड़ा है ।

मुख्य लक्षण--

अनियमित मासिक धर्म

मासिक धर्म का ना होना या बहुत ही कम होना

मासिक धर्म के समय अत्यधिक पीड़ा का अनुभव होना

शरीर मे मोटापे का बड़ना

चेहरे पर पुरुषों की तरह बालो का उगना

यु एस जी कराने पर ओवरी मे छोटी छोटी गांठो का होना ।


इस रोग से बचने के उपाय--
अपने मोटापे पर क्न्ट्रोल रखे । फ़ास्ट फ़ुड से परहेज रखे । धुम्रपान, मदिरापान आदि से परहेज रखे ।
सादा जीवन जियें और फ़लो और सब्जियो का ज्यादा मात्रा मे प्रयोग करे ।

चावल, लस्सी,कोल्ड ड्रीन्क, और ठन्डे पेय ना ले ।
आहार मे , उड़द की दाल, गाजर, लशुन, प्याज का ज्यादा प्रयोग करें ।

अनानास का प्रयोग बहुत ही उपयोगी पाया गया है ।
आयुर्वेदिक औषधियाँ --
किसीवैद्य की देख रेख मे आप निम्नलिखित औषधियों का प्रयोग कर सकते हैं
  • कुमार्यासव
  • दशमुलारिष्ट
  • रज:प्रवर्तनी वटी
  • कासीस भस्म
  • कुमारी घन
  • अविपतिकर चुर्ण
  • आरोग्यवर्धनी वटी
  • एरण्ड तैल
  • टैब. हाईपोनिड
  • कांचनार गुग्गलु
  • खदिरारिष्ट
  • मुण्डी कषाय
  • हिंग्वष्टक चुर्ण
  • टंकण भस्म

सोमवार, 22 फ़रवरी 2010

बच्चोंका श्वास रोग(asthma in kids)

बच्चॊं का श्वास रोग लड़कियों की आपेक्षा लड़कों मे ज्यादा होता है , शैशवावस्था मे दमे के सारे लक्षण व्यक्त नही होते है । सामन्यतया लोग समझते है की निमोनिया बिगड़ गया है , लेकिन यदि बच्चा बार सांस लेने मे दिक्कत महसुस करता है और कुछ समय के लिये लक्षण ठीक भी हो जाते है परंतु कुछ समय बाद फ़िर वही लक्षण हो जाते हैं । यदि साथ मे बुखार या सर्दी के अन्य लक्षण नही मिलते तो यह समझ लेना चाहिये की बच्चे को शवास रोग है ।

मुख्य लक्षण-- इस रोग मे बालक की छाती से बार बार और अत्यन्त उष्ण साँसे निकलती है । साँसो मे सीटी बजने जैसी आवाज आती है। बच्चे कॊ श्वास छोड़ने मे परेशानी आती है । हंफ़नी सी आने लगती है। कुछ बच्चॊं मे आवेग आने से पहले नाक से काफ़ी मात्रा मे स्राव आने लगता है । कुछ मे कफ़ युक्त खांसी और बुखार भी होता है ।

कारण--- मुख्य रूप से इसके तीन कारण होते है - एलर्जी, संवेगात्मक , और संक्रमण
इन सब का सम्मिलत रुप भी पायाजाता है । एलर्जी की प्रवृति वंशानुगत होती है यह मुख्य रुप से हवा मे मोजुद धुलि कण, धुँआ, परागकण, रोम, महक, और आहार से होती है , मोसम मे आये बदलाव भी एलर्जी का मुख्य कारण होते है ।

आहार विहार व्यवस्था-- आराम अधिक दे, शुद्ध वातारण मे रहें। उष्ण और शीत एक साथ सेवन न करें । संतुलित आहार दें । दुध मे सोंठ डालकर दें । शीतल और बाजार की वस्तुओं से परहेज रखें , दही . लस्सी , चावल, तले हुए मसाले दार आहार से परहेज रखें। बच्चे को खुश रखने का प्रयत्न करते रहें ।

आयुर्वेदिक चिकित्सा योग--
रसोन भुति-- लशुन को जलाकर उसकी राख को मधु मे मिलाकर कई बार सेवन करें ।

हरिद्राप्रयोग-- हल्दी की गाँठो को भुन कर शहद के साथ सेवन ।

शुद्ध फ़टकरी भस्म और शुद्ध टंकण भस्म बराबर मात्रा मे मिलाकर शहद के साथ सेवन करें ।

सरसों के तैल का प्रयोग-- सरसो के तैल मे कुछ कपुर और कुछ सैन्धा नमक डालकर छाती की मालिश करे ( तैल को थोड़ा गरम कर लें)
कनकसाव
दशमुलारिष्ट
हरिद्रा खण्ड
गोझरण अर्क
चित्रक हरितकी
मिश्यादि लेह
श्वासान्दा
सेप्टिलिन

शनिवार, 6 फ़रवरी 2010

गर्भपात एवं निवारण (Abortion and its Ayurvedic treatment )

आज के आधुनिक युग मे नकली आहार विहार के कारण गर्भपात की समस्या दिनों दिन बड्ती जा रही है ,। महंगे से महंगे इलाज के बावजूद कुछ अवस्थाऒं मे गर्भपात हो ही जाता है।
आयुर्वेद मे गर्भिणी के लिये कुछ विशेष आहार विहार का वर्णन किया गया है , जिसकॊ गर्भणि परिचर्या के नाम से जाना जाता है । यदि स्त्री इसका पालन करती है तो इस प्रकार की समस्या से छुटकारा पाया जा सकता है ।

गर्भपात के कारण---गर्भावस्था मे संभोग विशेष कर प्रारम्भ और अन्तिम महीनो मे ।
-अधिक कार्य करना
-अभिघात या चोट लगना, तेज चलने वाली सवारी करना, रात मे जागना और दिन मे सोना, वेगावरोध, उपवास करना,उकडु बैठना,
- जिन इन्द्रयों को जो भाव अच्छे न लगे उनको ग्रहण करना जैसे कि बीभत्स दृष्यों को देखना, कर्कश एवं कठोर शव्दो को सुनना, आदि,
-- स्त्री परपीडन ( किसी के दबाव मे रहना)
ये मुख्य कारण है ।
इसके अतिरिक्त गर्भ कि विकृति से और माता के योनि दोषों से भी गर्भपात की संभावना रहती है ।

लक्षण-गर्भाशय , कटि, पेडु, एवं बस्तिप्रदेश मे शूल और रक्तदर्शन ये गर्भपात के सामान्य लक्षण हैं ।


चिकित्सा-- कारणो का परित्याग, संपुर्ण शय्या विराम । शीतल आहार विहार, क्षीरी वृक्षों(बरगद, गुलर, पिलखन आदि) का पेडु पर लेपन और पान
मासानुमासिक गर्भस्रावहर योग-
१ प्रथम मास-श्वेत चन्दन , शतावरी , देशी खाण्ड, और मल्लिका इन सब को चावल के धावन मे पीसकर पीयें।

२ द्वितीय मास-- कमल, सिंघाडा और कसेरु को चावल के धावन के साथ पान

३ तृतीय मास-- क्षीर काकोली , काकोली या शतावर और आँवले को पीसकर कोष्ण जल के साथ पान

४चतुर्थ मास मे -- नीलकमल , कमल की जड, कटेरी की जड और गोखरु दुध मे पीसकर और घोलकर और देसी खाण्ड मिला कर पान करना

५ पंचम मास--नीलकमल और शतावरी को दुध और पानी मे उबाल कर पान करना

६ षष्ठ मास-- विजोरे निंबु के बीज, प्रियुंगु, लालचन्दन और नीलकमल को गाय के दुध मे पीसकर दुध के साथ पान करना

७शतावरी और मृणाल ( कमल ) को दुध मे उबाल कर पान करना ।

८ अष्टम मास -- ढाक के कोमल पत्तों को जल के साथ पीसकर घोल बनाकर मिश्रि मिलाकर पान ।

शनिवार, 30 जनवरी 2010

आन्त्र पुच्छ प्रदाह

इस रोग के लक्षण-- पेट के दाहनी ओर तीव्र वेदना, छूने मे असह्य दर्द, जवर और वमन ।
चिकित्सा-- दाना मेथी, अजवाइन सिंधि, असलिया इन चारों को दरड कर दो तोले को आठ गुणा जल मे औटा कर चतुर्थांश शेष रहने पर १ तोला पूरातन गुड मिला कर छान कर पिला दें, भोजन के बाद शंखवटी ५ रत्ती तक पानी से दे । सांय ५ बजे पुनर्नवादि क्वाथ दें ।

प्रलेप-- शूल के स्थान पर जहाँ शोथ नजर आता हो उस पर तज को पीस उस मोटा सा लेप गर्म-२ का कर दो।
प्रात:काल मे लेप करें

सोमवार, 11 जनवरी 2010

हरितकी, हरड़ (Terminalia chebula)

हरस्य भवने जाता हरिता च स्वभावत: ।
हरते सर्वरोगांश्च तस्मात् प्रोक्ता हरीतकी ॥
यह मधुरतिक्तक्शाय होने से पित्त, कटुतिक्तक्शाय होने से कफ़ तथा अम्लमधुर होने से वात का शमन करती है ।
इस प्रकार यह त्रिदोष शमन है ।
लवणेन कफ़ं हन्ति पित्तं हन्ति सशर्करा ।
घृतेन वातजाऩ रोगाऩ सर्वरोगाऩ गुडान्विता॥

लवण के साथ प्रयोग करने से यह कफ़ दोष का शमन करती है और शर्करा के साथ प्रयोग करने से यह पित्त दोष का शमन करती है । घी के साथ प्रयोग करने से यह सभी प्रकार के वात रोगॊं पर विजय प्राप्त करती है ।


पाचनसंस्थान पर यह विशेष कार्य करती है , बडी हरड की आपेक्षा छोटी हरड अधिक विरेचन करने वाली होती है , छोटी हरड कॊ घी मे भुन लेने पर उसकी रुक्षता दुर हो जाती है और उसे अपनी प्रकृति के अनुसार अनुपान के साथ लेने से पाचन संस्थान के सभी रोगों को दुर करती है ।
स्रोतो शोधन के लिये हरीतकी से उपर कोइ और औषधि नही है ,

स्वस्थ व्यक्ति यदि इसको ऋतुओं के अनुसार अनुपान बदलकर लेता है तो निश्चय ही वह दीर्घजीवी होता है ।


’ऋतुओं के अनुसार हरड़ का सेवन

वर्षा ऋतु मे ( आषाढ-श्रावण)-------- सैन्ध्व नमक के साथ
शरद ऋतु मे(भाद्रपद-अश्वनी) ------- शर्करा ( मिश्री) के साथ

हेमन्त(कार्तिक-मार्ग्शीर्ष)----------- शुंठी के साथ

शिशिर(पौष-माष) ------ पिपल के साथ

बसन्त(फ़ाल्गुन-चैत्र)---------- मधु के साथ

ग्रीष्म(बैशाख-ज्येष्ठ)----- गुड़ के साथ

प्रयोज्य अंग--फ़ल, मात्रा चुर्ण तीन से छ: ग्राम तक