शुक्रवार, 3 मई 2013

मेदोदोष(Obesity)मे योगत्रयम ।

योग न० १---- बेल, अरणी, सोनापाठा, गम्भारी, और पाढल इन पाँचो की जड की त्वचा का काढा बनाकर शहद मे मिलाकर सभी प्रकार के मेदोविकार नष्ट होते है ।
योग न० २---त्रिफ़ला का काडा बनाकर शहद मिलाकर पीने से सभी प्रकार के मेदोदोष नष्ट होते है ।

योग न० ३---पानी को गरम करके ठन्डा होने पर शहद मिलाकर पीने से भी सभी प्रकार के मेदोविकार नष्ट होते है ।

विशेष-- शहद काढे का चतुर्थांश लेना चाहिये, २० ग्राम औषधि को ३२० ग्रा. पानी मे जब तक धीमी आँच पर गरम कर जब तक की वो आधा नही रह जाता । प्रात: काल काढे का सेवन करें। (शा. सं,म,ख,२)

बुधवार, 1 मई 2013

पुरुषत्व वृदि के लिये







आहार मे दुध का प्रयोग , उडद का प्रयोग, नये देसी घी का सेवन, नये अन्नॊ का सेवन, साठी चावल दुध के साथ सेवन, सुखे मेवे, खजुर , मुन्नका, सिंघडा, मधु, मक्खन, मिश्रि, आदि आहार वीर्य वर्धक होते है ।

       अमिष भोजोनो मे ताजा मांस, पक्षियों के अण्डों का सेवन, वन्य चटक पक्षि का मांस, मगर के अण्डे या मांस का सेवन  वीर्य वर्धक होता है ।
           
            आयुर्वेदिक औषोधियों मे , अश्वगन्धा लेह, शतावरी घृत, कामदेव चुर्ण, धातु पौष्टिक चुर्ण, क्रोंच पाक , मुसली पाक, आदि बहुत ही उपयोगी होते है । जिनकॊ प्राय: अवसाद की स्थिति बनी रहती है उनके लिये इन आहार और औषधियों का सेवन बहुत ही हितकर होताहै ।
     देसी गाय का दुध सदा ही हितकर होता है और मानसिक रोगों को जड से खत्म करता है

शनिवार, 30 मार्च 2013

२००१ से हेपैटाईटीस से पिडित हूँ ( Hepatitis B )

DDear Sir,
 I m suffering from Hepatites B from 2001. Is there are any treatment in Ayurveda about this diesease ??? Plz tell if there are any chances for any treatment because i m single yet and wanna married soon.
Best regds,

.आयुर्वेद मे यकॄत रोगों का इलाज संभव है । सबसे पहले तो आप आम पाचन के लिये सुदर्शन चुर्ण २ ग्रा. और अर्क मको २५ मि. लि. सबह खाली पेट १ सप्ताह के लिये सेवन करें।
उसके बाद पंचतिक्त घृत ५० मि. ग्रा. से शुरु करके ५० मि. ग्रा. हर रोज बडाते हुए तीन दिनो तक सुर्यदोय होने के समय सेवन करे और केवल मुंग की दाल वाली खिचडी का सेवन करे , प्यास लगने पर कोष्ण जल का सेवन करें।
हल्के जुलाब लगाने के लिये आप निशोथ ४ ग्रा. और १० ग्रा. मिश्रि मिलाकर सेवन करें , इससे आपको हल्के दस्त लगेंगे घबराना मत।
आरोग्य वर्धनी वटी ४०० मि ग्रा.
लोक नाथ रस २५० मि. ग्रा.
धात्री लौह २५० मि. ग्रा. 
यह एक मात्रा है , इसको आप सुबह शाम शहद मे मिलाकर सुबह शाम खाली पेट ले।
भुमि आँवला १२ ग्रा. रात को आधे गिलास गर्म पानी मे भिगोकर सुबह खाली पेट ले 
यह आप लगातार 90 दिनो तक करें।
गरिष्ठ भोजन, अधिक तैलीय पदार्थ , और मिर्च का सेवन मत करें |

शुक्रवार, 29 मार्च 2013

Oligozoospermia, Shukra Dosha,अल्प शुक्राणु

Dear Sir,
Dear Sir,

I am suffering from oligospermia and wants to make father but less sperm causes i cant make father.
can I growth in my sperm count.
I am suffering from oligospermia and wants to make father but less sperm causes i can
surendra

आज कल फ़ास्ट लाईफ़ और फ़ास्ट फ़ुड से इस प्रकार की समस्याएँ दिन प्रतिदिन बड रही है । सुरेन्द्र जी सबसे पहले तो आप अपनी दिनचर्या कॊ नियमित किजिये और व्ययाम जरुर करिये । सादा खाना खाएँ और धुम्रपान और मदिरा पान यदि आप करते है तो फ़ोरन बन्द कर दें।
यहाँ मै कुछ आयुर्वेदिक औषधियाँ लिख रहा हुँ इनको लगातार तीन महीनो तक सेवन करे और पथ्य पालन करे । 
क्रोन्च बीज चुर्ण १ ग्रा.
गोखरु चुर्ण १ ग्रा.
मुसली चुर्ण १ ग्रा.
सुबह शाम एक एक चमच दुध के साथ
रस सिन्दुर १२५ मि. ग्रा.
वंग भस्म २५० मि. ग्रा.
शुद्ध शिलाजीत २५० मि. ग्रा.
पुष्पध्न्वा रस १२५ मि.ग्रा.
ये सभी शहद मे मिलाकर सुबह शाम दुध के साथ
कुमार्यासव ( जितना पुराना मिल सके उतना ही अच्छा) २५ मि. लि. और सममात्रा जल मिलाकर खाना खाने के बाद दो बार 
आयुर्वेद मे निष्ठा रखकर लगातार तीन महीनो तक इन औषधियों का सेवन करे आप अवश्य ही ठीक हो जाओगे

सोमवार, 25 मार्च 2013

HIV & AIDS and its management in Ayurveda, एच आई वी एवम् ए आई डी एस का आयुर्वेद मे साक्षेप निदान एवम् चिकित्सा सुत्र भाग २

राजयक्ष्मा का आयुर्वेद मे वर्णन किया गया है यह रोगों का राजा होने के कारण ही इसका यह नाम दिया गया है ।
                  अनेकरोगानुगतो बहुरोगषुरोगम:।
                  राजयक्ष्मा क्षय: शोषो रोगराडिति च स्मृत; ॥

अनेक रोगो से अनुगत( बहुत से रोग रोगी को लग जाते हैं , रोगों का समुह )
तथा बहुत से रोग जिसके आगे चलते हैं । क्षय , शोष और रोगराट् इसके पर्याय हैं ।
आयुर्वेद मे इस रोगके प्रारंभिक लक्षण--


             पूर्वरुपं प्रतिश्यायो दौर्बल्यं दोषदर्शनम् ।  अदोषेष्वपि भावेषु काये बीभत्सदर्शनम् ॥
घृणित्वमश्नतश्चापि बलमांसपरिक्षय: । स्त्रीमद्यमांसप्रियता चावगुंठ्ने ॥
माक्षिकाघुणकेशानां तृष्णानां पतनानि च ।...... (चरक)

बार बार सर्दी जुकाम का होना, दुर्बलता, दोषरहित वस्तुओं मे भी दोष देखना , शरीर मे बीभत्स रुप देखना, घृणा करना, भोजन करने पर भी बल और मांस का क्षय हो जाना, स्त्रियों मे मांस भक्षण मे अधिक रुचि का हो जाना आदि ।


आयुर्वेद मे वर्णित इस रोग के ग्याराह लक्षण ( एकादश रुप )

  1. बार बार जुकाम लगना
  2. श्वास ( सांस लेने मे दिक्क्त )
  3. कास ( खांसी )
  4. अंसरुजा ( गर्दन और छाती के उपर भाग मे दर्द या बेचैनी )
  5. शिरोरुजा ( सिर मे दर्द )
  6. अरुचि ( भुख नही लगना )
  7. अतिसार
  8. विट्संग( कब्ज)
  9. वमन
  10. पार्श्वशुल 
  11. ज्वर
इस रोग मे रोगी के मल और शुक्र की रक्षा करनी जरुरी होती है । क्योंकि इस रोग मे  रोगी का मल ही उसका बल होता है ।
इस रोग की आयुर्वेद् मे साध्य- असाध्यता--
बल युक्त और मांसयुक्त रोगी साध्यहोताहै । इसके विपरीत बलहीन और मांसहीन रोगी असाध्य होता है ।
आयुर्वेद मे इस रोग का चिकित्सा सुत्र--
बलवान रोगी मे पंचकर्म लाभदायक ।


आहार व्यवस्था--
  बकरी का दुध, गाय का दुध, जौ के बने पदार्थ भात दलिया रोटी आदि 
लावा, तीतर मुर्गा बटेर के मांस मे अम्ल रस यानि खट्टे पदार्थ डालकर खाना ।
पीपर जौ कुल्थी सौंठ अनार के रस और आंवले के साथ घी मे बना हुआ मांस ।
वारुणी ( सर्वोत्तम मद्य का सेवन करना )
लघुपंचमुल से सिद्द् दुग्ध और जल का सेवन ।
भुमि आमला नामक बुटी से सिद्द् किया हुआ जल हमेशा पीना ।
उत्तरभक्तिकम् -- भोजनोपरांत बलाघृत या रास्ना घृत या दशमुलाद्य्घ्हृत का पान करना ।
खट्टे अनार रस , या खटकल बुटी से युक्त मांसरस (सूप का प्रयोग करना )
औषध व्यवस्था----

  1. अश्वगंधा के सिद्द् किये हुए दुग्ध से निकाले घी को शर्करा और् दुध के साथ पीय़ें ।
  2. अश्वगंधा भस्म को शहद मे डालकर चांटे ।
  3. सितोपलादि चुर्ण का प्रयोग
  4. एलादि चुर्ण ( अं . हृ. )
  5. यवानी षाड्व (चरक)
  6. पंचगव्य
  7. च्यवनप्राश
  8. सह्र्सपुटी अभ्रक भस्म
  9. माणिक्यरस



सोमवार, 4 मार्च 2013

HIV & AIDS and its management in Ayurveda, एच आई वी एवम् ए आई डी एस का आयुर्वेद मे साक्षेप निदान एवम् चिकित्सा सुत्र

एच आई वी संक्रमण--  यह एक वाईरल संक्रमण होता है जो कि शरीर की रोग प्रतिरोधक प्रणाली को धीरे धीरे खत्म कर देता है , फ़लस्वरुप रोगी विभिन्न रोगों से ग्रसित होकर मृत्यु का ग्रास बन जाता है ।

( एच आई वी संक्रमित व्यक्ति अपनी जिन्दगी सामान्य रुप से जीसकता है ,  बस उसको जरुरत है सजग रहने की )

आयुर्वेद मे लगभग सभी संहिताओं मे ओज का वर्णन किया है , यही मनुष्य का बल होता है यह ओज ही शरीर को रोगों से लडने का बल प्रदान करता है ।  इस रोग मे इस ओज का ही क्षय होता है , जिसके कारण मनुष्य अकाल मृत्यु का ग्रास बन जाता है । हजारों साल् पहले ही इस रोग का वर्णन आयुर्वेद मे किया गया है ।

  एच आई वी संक्रमण कैसे होताहै --  वैसे तो रोग प्रतिरोधक क्षमता एक भगवान की देन होती है ।
मुख्य कारण--

  • योन संबंध--  असुरक्षित योन संबध 
  • पहले से प्रयोग की गई सिरिंज से
  • संक्रमित रक्त से 
  • संक्रमित माता के दुध से उसके बच्चे मे 
योन संबंध -- असुरक्षित योन संबध  ही मुख्य कारण  होता है , इसमे  असुरक्षित योनि मैधुन, गुदा मैधुन, मुख्य है
गुदा मैधुन अत्यधिक गंभीर होता है । मुख मैथुन इनकी आपेक्षा बहुत ही कम गंभीर होता है ।

मुख मैथुन से एच आई वी संक्रमण बहुत ही विरले केस मे मिला है ।

एच आई वी वाईरस के वाहक--  संक्रमित व्यक्ति का  तरल --

  • रक्त
  • योनि तरल
  • गुदा तरल
  • प्लास्मा
  • वीर्य
मुख के तरल ( सलाईवा) मे एच आई वी वाईरस नग्न्य होता है }
एच आई वी संक्रमण संक्रमित व्यक्ति के वाईरल लोड पर निर्भर रहता है , यदि वाईरल लोड ज्यादा रह्ता है तो संक्रमण का ज्यादा खतरा रहता है ।
एच आई वी संक्रमित व्यक्ति विना कुछ लक्षणॊ के भी संक्रमण कर सकता है ।

यदि आपने असुरक्षित योन संबध किया है तो तुरंत ही आप एच आई वी का टेस्ट करवाएं , जल्दी पता लगने पर आप्  की चिकित्सा संभव है और एक् बेहतर जीवन जी सकते हो ।


एच आई वी संक्रमण के मुख्य लक्षण--
यद्यपि एच आई वी संक्रमित व्यक्ति कई सालो तक बिना लक्षणॊं के रह सकता है , लक्षण भी एक समान नही होते हैं ।  एच आई वी स्ंक्रमण की अंतिम अवस्था एड्स के नाम् से जानी जाती है  लेकिन आजकल बेहतर इलाज होने के कारण इस अवस्था से बचा जा सकता है ।

  • बार बार सर्दी जुकाम लगना
  • लो ग्रेड फ़ीवर यानि लगातार बुखार का बना रहना
  • शरीर मे फ़ोड़े फ़ुन्सियों का अधिक निकलना 
  • अतिसार होना ।
  • शरीर का अचानक भार कम हो जाना ।
ये लक्षण मुख्य रुप से होते हैं ,  पर् जरुरी नही है कि ये लक्षण हो , या ये लक्षण हो तो जरुरी नही है कि संक्रमण हो ।
निश्चय् तो टेस्ट करवाने से होता है ।


संक्रमण से बचने के उपाय -- इसका मुख्य उपाय है धर्म का पालन करना । मर्यादा मे रहना ।  अजनबी से योन संबंध करते वक्त कंडोम का प्रयोग करना । कंडोम इस रोग को रोकने मे ९९% कारगार है।



आधुनिक चिकित्सा मे इसका इलाज-- आजकल एंटी वाईरल ड्रुग  से इस रोग की रोकथाम बहुत हद तक हो गई है  । लेकिन आधुनिक चिकित्सा मे इसका समुल नाश नही किया जा सकता है , यानि की दवाईयों का प्रयोग पूरी उम्र तक किया जाता है

एच आई वी संक्रमण  के बारे आयुर्वेद मे क्या मत है इसका उल्लेख अगले लेख मे किया जाएगा ।
                     

बुधवार, 7 नवंबर 2012