शंखपुष्पी सरा स्वर्या कटुस्तिक्ता रसायनी । अनुष्णा वर्णमेधाग्निबलायु:कान्तिदा ॥
हरेत अपस्मारमथोन्मादमनिद्रां च तथा भ्रम॥
शंखपुष्पी का एक नाम मांग्ल्यकुषुमा भी है यदि इसके सुबह दर्शन हो जाते है तो यह शुभ फ़ल देने वाली होती है ।
शंखपुष्पी के बारे मे युँ तो विद्वानो मे बहुत ही मत भेद हैं , परन्तु चित्रोक शंखपुष्पी को ही ज्यादातर विद्वान शंखपुष्पी की तरह प्रयोग करते हैं ।
आधुनिक द्रव्य गुण शास्त्र मे इसको मेध्य वर्ग मे रखा गया है ।
पराम्परागत रुप से यह हमारे क्षेत्र मे दिल की होल यानि हृद्द द्र्व के लिये प्रयोग होती है । इसके स्वरस का प्रयोग अनिद्रा मे किया जाता रहा है । मेध्य होने के कारण बच्चों को सीरप पीलाये जाते हैं ।
यह स्निग्ध, पिच्छिल, शीत तिक्त और प्रभाव से मेध्य होती है ।
दोषकर्म मे यह मुख्य रुप से वातपित्त शामक होती है । विभिन्न वातपैत्तिक विकारों मे इसका प्रयोग किया जाता है ।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें