- अमलतास के पत्ते , चक्वड के बीज , करंज के बीज, वासा, गुडुच मदन हरिद्रा
- गन्धबिरोजा, देवदारु, खदिर, धव, न्हीम, विडंग, तथा कनेर कि छाल|
- भोजपत्र की गांठे, लहसुन, शिरिष, लोमश, गुग्गुलु तथा सहिजना की छाल |
- वनतुलसी , वत्सक, सप्तपर्ण, पीलु कुष्ठ , चमेली ।
- वचा, हरेणु, त्रिवृत, निकुम्भ, भल्लातक, तथा गैरिक एवं अंजन|
ये जो सभी औषधियां कही गई है उन सभी को बारीक पीसकर उनमे गोरोचन की भावना देकर फ़िर पुन: पीसकर सरसों के तैल मे मिलाकर चिकित्सक इनका प्रयोग करे ।
किटिभ(Psoriasis), श्वेत कुष्ठ(Leucoderma), इन्द्र्लुप्त(Alopecia), अर्श(Piles), अपची(Cervical adenitis) , तथा पामा(Scabies)रोगो मे इनका प्रयोग किया जाता है ।........ शेष अगली पोस्ट मे
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