रविवार, 24 मई 2009

(फ़ेलोपियन टुयुब ब्लोकेज को ठीक करने के अयुर्वेदिक तरीके) Steps to unblock Fallopian tubes blockage in ayurveda

आयुर्वेद प्राचीन समय से असाध्य रोगों मे बहुत ही असरकारी रही है । स्त्रीयों के बन्ध्यत्व मे टयुब बलोकेज एक मुख्य कारण है , जिसका कोई भी इलाज मोडरन चिकित्सा प्रणाली मे  सफ़ल नही है , हालांकि शल्य कर्म का सहारा लिया जा सकता है किन्तु उसमे मे भी कोई गारन्टी नही होती कि शल्य कर्म से ट्युब ब्लोकेज ठीक हो जाए ।

 ट्युब ब्लोकेज क्यों होती है ----इसके व्यापक कारण होते है मुख्य रुप से निम्न्लिखित कारण है ।
 १ जन्मजात
२ आघात के कारण
४, इन्फ़ेक्सन के कारण
५.केल्सियम जमा होने के कारण
६ पेलविक शोथ जन्य रोगों  के कारण
७ डिम्ब वाहिनि मे अर्बुद( out growth, cysts cancer etc) होने के कारण
  

आयुर्वेद चिकित्सा कैसे  ब्लोकेज को ठीक करती है ---
१ फ़ेलोपियन ट्युब के शोथ को ठीक करके।
२ इन्फ़ेक्सन को दूर करके ।
३ गर्भाशयगत अंगो का विकास करके और उनको स्वस्थ करके।
४, ट्युब मे हुई व्रणवस्तु(scar ) को मृदु करके उसको दुर करता है और वाहिनि को स्निग्ध करता है ।
 
आयुर्वेदिक चिकित्सा व्यवस्था--
१ स्थानिक: विभिन्न आयुर्वेदिक औषधियों का लेप और पिचु धारण (tampons and douches)-

२ खाने के लिये आयुर्वेदिक औषधियाँ ।

३योग एवं आसन

४ पंचकर्म - उत्तर बस्ति , स्नेहन, स्वेदन आदि

५आहार एवम विहार

अधिक जानकारी के लिये आप मुझे संपर्क कर सकते है ।


सोमवार, 27 अप्रैल 2009

मधुमेह यानि डायबेटीज

जौ, कंगुनि,सावां, आदि धान्यों से बनी विविध प्रकार के भोज्य वस्तुएँ लाभ प्रद रहती है । जौ का दलिया या आटे की रोटी बना कर लेना चाहिये। लगातार कई महीनो तक सेवन करने के बाद ही यह अपना पर्याप्त लाभ दिखाता है ।यह रक्तगत शर्करा को और स्थुलता को भी कम करता है ।
   भुने हुए अन्न प्रचुर मात्रा मे प्रयोग करने चाहिये , यदि दांत मजबुत है तो भुने हुए अन्न जैसे कि चनो को चबा चबा कर खाने चाहिये और यदि दांत कमजोर है तो सत्तु बना कर प्रयोग करना चाहिये।

मधुमेह के रोगियों के लिये लस्सी एक बहुत ही उपयुक्त पेय है  इसको जितना प्रयोग कर सकते हो तो करो ।
जितना व्ययाम कर सको उतना करो । हर रोज शरीर की मालिश करने के बाद स्नान करना भी बहुत ही लाभकारी है ।
   
        य तो थी आहार विहार की बात , आयुर्वेदिक औषधियों मे , शिलाजीत, सुदर्शन चुर्ण, चिरायता, गिलोय , करन्ज बीज चुर्ण और अश्वगन्धा चुर्ण, बसन्त कुसुमाकर रस, मेथी दाना, जामुन के बीज, मामजक, विजयसार की लकडी, डोडी पनीर, आदि बहुत सारी औषधियाँ वैद्य की सलाह से प्रयोग करें ।

बुधवार, 22 अप्रैल 2009

ग्रीष्म ऋतु आहार विहार

आयुर्वेद एक चिकित्सा पद्दति होने के साथ साथ एक जीवन दर्शन भी है । हमारे आचार्यों ने  ऋतुऒं के अनुसार आहार विहार
का बहुत ही अच्छा वर्णन किया गया है । आज कल गरमी जोरों पर है । इस काल मे हमारे आचार्य क्या कहते है यह देखेते है _
 ग्रीष्म ऋतु --दो महीने यानि बैशाख और जयेष्ठ को ग्रीष्म ऋतु माना गया है । राशि के हिसाब से वृष और मिथुन राशि मे जब सुर्य होता है तो वह काल ग्रीष्म काल होता है ।

   ग्रीष्म ऋतु मे  अति तीक्ष्ण किरणों वाला सूर्य संसार से स्नेह को नष्ट करता है ; जिससे प्रतिदिन मनुष्यों मे श्लेष्मा ( कफ़) घटता है और वायु बढती है इसलिये इस ऋतु मे नमक, कटु,तथा अम्ल रस, व्ययाम, और सूर्य की किरणो का त्याग करना चाहिये॥ ( अ० ह्रु०)
सेवनीय- मधुर , लघु, स्निग्ध, और शीतल एवं द्रव पदार्थ।
अतिशय शीतल जल से स्नान करना और जॊ से बने सत्तु को खाना।
 असेवनीय--  मद्य का सेवन, ( यदि करना है तो भरपुर पानी मिलाकर करें) , घन मांस रस ( गाढा मास का सूप) या रुक्ष मांस, और मैथुन कर्म का सेवन मत करे
 
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गुरुवार, 16 अप्रैल 2009

कमर दर्द, कटि शूल, ( Back pain)

कमर दर्द आजकल एक सामान्य समस्या है , कमर दर्द के अनेक कारण होते है , यदि हम मोडरन सांईस के हिसाब से कारण बताएं तो अनेक कारण है । लेकिन आयुर्वेद के हिसाब से कमर दर्द मुख्य रुप से वात कफ़ज होता है ,


कमर दर्द से बचने के सामन्य उपाय-- कभी भी झुक कर भार मत उठाएं, आगे की तरफ़ झुक कर काम न करें, हमेशा एक स्थिति मे मत बैठें रहे। सोने के लिये सख्त बैड का प्रयोग करें। वात प्रकोपक आहार विहार से परहेज रखें जैसे की , दिन मे चावल, कढी, आइसक्रीम, आदि मत ले


कमर दर्द को ठीक करने के लिये आयुर्वेदिक औषधियाँ-


यह एक परिक्षित योग है , बृहत वात चिन्ता मणि रस- १२५ मि. ग्रा.

योगराज गुग्ग्लु ४०० मि. ग्रा.

शुद्द शिलाजीत २५० मि. ग्रा.

यह एक मात्रा है सुबह शाम खाना खाने से पहले ( लगभग एक घन्टा पहले) दो बार शहद मे मिलाकर

बलारिष्ट २५ मि. लि. + समान मात्रा मे पानी मिलाकर दो बार खाना खाने के बाद ।

स्थानिक प्रयोग- महाविषगर्भ तैल और महानारयण तैल दोनो मिलाकर कमर की मालिश करना

मंगलवार, 14 अप्रैल 2009

यकृत रोगों की अपुर्व औषोधि काकमाची( मकोय) Soleanum nigrum

काकमाची या मको उत्तर भारत मे लग्भग हर जगह पायाजाता है । यह पौधा खुब हरा भराहोताहै ।
दैनिक चिकित्सा मे मै इसको भरपुर उपयोग मे लाता हूँ । लिवर को रोगो मे इसका उपयोग बहुत ही उपयोगी है ! जहाँ एक से एक महंगी औषधियाँ काम नही करती यह काम कर जाती है ।

गुण तथा दोष कर्म--- तिक्त तथा कटुरस,स्निगध, उष्ण, रसायन, शुक्रजनन, तथा त्रिदोषशामक


लिवर रोगो मे इसको देने का तरीका---शुद्ध भूमि से इसके पौधे को जड समेत उखाड कर अच्छी तरह से धो लें। इसके बाद इसको कुट कर इसका रस निकाल ले । एक मिट्टी कि हाण्डी लेकर इस रस को तब तक मन्द आँच पर तब तक गर्म करें जब तक की इसका रँग हल्का गुलाबी नही हो जाता ।
अब इसकॊ करीब ५० मि. लि. लेकर इसमे ३ काली मिर्चों का चुर्ण डालकर पी जाएं
यदि आपकी जठराग्नि तीव्र है तो इसकॊ खाली पेट ले नही तो खाना खाने के १ घन्टे बाद ले । दिन केवल एक बार ले

ध्यान देने योग्य बात यह है कि स्वरस हर रोज ताजा उपयोग करें। हर रोज बनाये और प्रयोग मे लाएं।

शुक्रवार, 10 अप्रैल 2009

संधिवात एवं स्थुलता

dear dr.sb. ,by chance reached yr blog and it impressed me a lot .It
looked very good in public as well personal interest.I am 48 years old
professor in college, having weight of about 80 kg with height165
cm,suffering from slight osteoarthritis,obesity, tiredness,a little
disturbance in digestion though usually appetite is good.Kindly advise
me to loose weight, become free,fit and full of vitality.At the end of
the day I usually feel tired.I sleep late night about 12pm due to my
study habits.This is the story and pl.diagnose to get relief
with regards and best wishes for yr blog......
बहुदा मैने देखा है कि सन्धिवात और स्थुलता का आपस मे घनिष्ठ सम्बंध है । मोटापे के कारण सन्धिवात हो जाया करता है
सबसे पहले तो आप अपनी दिनचर्या को ठीक किजिये । फ़ास्ट फ़ुड, ज्यादा तली हुए पदार्थ, बार-बार खाना और ज्यादा चाय पीना इन सब को छोड दिनिये। योग किजिये ।

आयुर्वेदिक चिकित्सा--- स्थानिक प्रयोग पंचगुण तैल और महामाष तैल दोनो मिलाकर और उसमे अश्व्गन्धा चुर्ण मिलाकर उसकी लुग्दी बना ले उसको गर्म करके रोटी कि तरह की सेप बनाकर प्रभावित स्थान पर लगा दें और उपर से कोई कपडा बान्ध दे । अगर आप ये सब कुछ ना कर सकते हो तो केवल उपरोक्त तैलों से मालिश करने के बाद सेक करें
सिहँनाद गुगुल वटी ५०० मि. ग्रा.
कुमार्यासव एवम महारासनादि क्वाथ दोनो १० -१० मि.लि. तथा समान मात्रा मे पानी मिलाकर (जितना पुराना मिल जाये उतना ही अच्छा )
सुबह शाम खाना खाने के बाद दिन मे दो बार
रात को सोते समय एरण्ड तैल एक चमच दुध मे मिलाकर ले ।
इसके अतिरिक्त आप दिन मे कभी मत सोये, हमेशा पानी कोष्ण और भोजन करने से पहले ले , बाद मे पानी मत पियें
क्योकि उम्र बढ्ने के साथ साथ वात दोष की भी वृद्दि होती है अत: आप लगातार इन औषधियों का सेवन किजिये अवश्य ही आपको स्वास्थय लाभ प्राप्त होगा

मल्टीपरपज औषधि रसोंत ( रसाञन्जन) Extract of berberis aristata

यह काला पन लिये हुए भुरे रंग की गोंद जैसी मुलायम और पानी और मदिरा मे घुलने वाली औषोधि होती है , बाजार मे कई प्रतिषिठ कम्पनीयाँ इसे शुद्ध अवस्था मे बेचती हैं । दारु हल्दी के क्वाथ और बकरी के दुध से इस औषधि को बनाया जाता है ।

गुण-- यह कटु , तिक्त, कफ़ , विष तथा नेत्र रोग को दुर करने वाला , उष्ण वीर्य , रसायन , छेदन, एवम व्रण सम्बन्धित रोगों को दुर करने वाला होता है ( भाव प्रकाश)

प्रयोग- खुनी बवासीर _ २५० मि. ग्रा. दिन मे दो बार ताने पानी के साथ और साथ मे इसबगोल पाउडर आधा चमच रात को एक बार ताजे पानी के साथ ,

स्थानिक प्रयोग के लिये- रंसोत को पानी मे घोल कर गुदा प्रक्षालन करें , अर्शांकुर( मस्से) कुछ समय बात समाप्त हो जाएंगे।

हर प्रकार के नेत्राभिष्यंद( आई फ़्ल्यु) ---शुद्ध रसोंत को गुलाब जल मे घोलकर दो दो बुन्दे डाले बहुत फ़ायादा होता है

मुखपाक -- इसका क्वाथ का कुल्ला करने से फ़ायदा होता है ।

सभी प्रकार के घावों मे शहद और रसोंत को मिलाकर लगाने से बीटा डीन से जल्दी घाव को ठीक कर देता है ।

विषम ज्वर ( मलेरिया) मे १ - १ ग्रा. दिन मे दो बार लेने से फ़ायादा होता है ।

शुद्ध रसोंत को चेहेरे की फ़ुन्सियो पर लगाने पर उनको ठीक कर देता है