रविवार, 4 सितंबर 2011
मंगलवार, 12 जुलाई 2011
Local application in Various Skin diseases त्वकरोगविकार हेतु बत्तीस सफ़ल योग ( चरक संहिता)
- अमलतास के पत्ते , चक्वड के बीज , करंज के बीज, वासा, गुडुच मदन हरिद्रा
- गन्धबिरोजा, देवदारु, खदिर, धव, न्हीम, विडंग, तथा कनेर कि छाल|
- भोजपत्र की गांठे, लहसुन, शिरिष, लोमश, गुग्गुलु तथा सहिजना की छाल |
- वनतुलसी , वत्सक, सप्तपर्ण, पीलु कुष्ठ , चमेली ।
- वचा, हरेणु, त्रिवृत, निकुम्भ, भल्लातक, तथा गैरिक एवं अंजन|
ये जो सभी औषधियां कही गई है उन सभी को बारीक पीसकर उनमे गोरोचन की भावना देकर फ़िर पुन: पीसकर सरसों के तैल मे मिलाकर चिकित्सक इनका प्रयोग करे ।
किटिभ(Psoriasis), श्वेत कुष्ठ(Leucoderma), इन्द्र्लुप्त(Alopecia), अर्श(Piles), अपची(Cervical adenitis) , तथा पामा(Scabies)रोगो मे इनका प्रयोग किया जाता है ।........ शेष अगली पोस्ट मे
शुक्रवार, 8 अप्रैल 2011
Shankhpushpi, Convolvulus pluricaulis, शंखपुष्पी
शंखपुष्पी सरा स्वर्या कटुस्तिक्ता रसायनी । अनुष्णा वर्णमेधाग्निबलायु:कान्तिदा ॥
हरेत अपस्मारमथोन्मादमनिद्रां च तथा भ्रम॥
शंखपुष्पी का एक नाम मांग्ल्यकुषुमा भी है यदि इसके सुबह दर्शन हो जाते है तो यह शुभ फ़ल देने वाली होती है ।
शंखपुष्पी के बारे मे युँ तो विद्वानो मे बहुत ही मत भेद हैं , परन्तु चित्रोक शंखपुष्पी को ही ज्यादातर विद्वान शंखपुष्पी की तरह प्रयोग करते हैं ।
आधुनिक द्रव्य गुण शास्त्र मे इसको मेध्य वर्ग मे रखा गया है ।
पराम्परागत रुप से यह हमारे क्षेत्र मे दिल की होल यानि हृद्द द्र्व के लिये प्रयोग होती है । इसके स्वरस का प्रयोग अनिद्रा मे किया जाता रहा है । मेध्य होने के कारण बच्चों को सीरप पीलाये जाते हैं ।
यह स्निग्ध, पिच्छिल, शीत तिक्त और प्रभाव से मेध्य होती है ।
दोषकर्म मे यह मुख्य रुप से वातपित्त शामक होती है । विभिन्न वातपैत्तिक विकारों मे इसका प्रयोग किया जाता है ।
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