मंगलवार, 12 जुलाई 2011

Local application in Various Skin diseases त्वकरोगविकार हेतु बत्तीस सफ़ल योग ( चरक संहिता)

  1. अमलतास  के पत्ते , चक्वड के बीज , करंज के बीज, वासा, गुडुच मदन हरिद्रा 
  2. गन्धबिरोजा, देवदारु, खदिर, धव, न्हीम, विडंग, तथा कनेर कि छाल|
  3. भोजपत्र की गांठे, लहसुन, शिरिष, लोमश, गुग्गुलु तथा सहिजना की छाल |
  4. वनतुलसी , वत्सक, सप्तपर्ण, पीलु कुष्ठ , चमेली ।
  5. वचा, हरेणु, त्रिवृत, निकुम्भ, भल्लातक, तथा गैरिक एवं अंजन|
       6 मैनसिल, हर्ताल, गृहधूम, एला , कासीस, लोध्र, अर्जुन, नागरमोथा, तथा सर्ज


ये जो सभी औषधियां कही गई है उन सभी को बारीक पीसकर उनमे गोरोचन की भावना देकर फ़िर पुन: पीसकर सरसों के तैल मे मिलाकर चिकित्सक इनका प्रयोग करे ।
किटिभ(Psoriasis), श्वेत कुष्ठ(Leucoderma), इन्द्र्लुप्त(Alopecia), अर्श(Piles), अपची(Cervical adenitis) , तथा पामा(Scabies)रोगो मे इनका प्रयोग किया जाता है ।........ शेष अगली पोस्ट मे 

शुक्रवार, 8 अप्रैल 2011

Shankhpushpi, Convolvulus pluricaulis, शंखपुष्पी

शंखपुष्पी सरा स्वर्या कटुस्तिक्ता रसायनी । अनुष्णा वर्णमेधाग्निबलायु:कान्तिदा ॥
हरेत अपस्मारमथोन्मादमनिद्रां च तथा भ्रम॥ 
शंखपुष्पी का एक नाम मांग्ल्यकुषुमा भी है यदि इसके सुबह दर्शन हो जाते है तो यह शुभ फ़ल देने वाली होती है ।
शंखपुष्पी के बारे मे युँ तो विद्वानो मे बहुत ही मत भेद हैं , परन्तु चित्रोक शंखपुष्पी को ही ज्यादातर विद्वान शंखपुष्पी की तरह प्रयोग करते हैं ।
आधुनिक द्रव्य गुण शास्त्र मे इसको मेध्य वर्ग मे रखा गया है । 
पराम्परागत रुप से यह हमारे क्षेत्र मे दिल की होल यानि हृद्द द्र्व के लिये प्रयोग होती है । इसके स्वरस का प्रयोग अनिद्रा मे किया जाता रहा है । मेध्य होने के कारण बच्चों को  सीरप पीलाये जाते हैं । 
यह स्निग्ध, पिच्छिल, शीत तिक्त और प्रभाव से मेध्य होती है । 
दोषकर्म मे यह मुख्य रुप से वातपित्त शामक होती है । विभिन्न वातपैत्तिक विकारों मे इसका प्रयोग किया जाता है ।

शनिवार, 12 मार्च 2011

Rakta- Mokshana (Blood-Letting) : रक्त मोक्षण यानि खून का निकलना ,

आयुर्वेद शरीर के शोधन पर यानि शरीर की शुद्धता पर बल देता है  यदि शरीर शुद्ध है तो कोई भी विषाणू या जीवाणु या अन्य कारणों से उत्पन्न रोग शरीर मे कभी नही पनपते । यही आयुर्वेद और मोड्रन चिकित्सा विज्यान मे अन्तर है । रक्तमोक्षण भी आयुर्वेद के पंचकर्मों मे गिना जाता है । प्राचीन काल से ही इस क्रिया का आयुर्वेद मे प्रयोग किया जा रहा है , आज भी कुछ परम्परागत लोग रक्तमोक्षण यानि नस को काटते है जिससे विभिन्न रोगों का तुरंत नाश हो जाता है । आस्था आयुर्वेद असंध मे भी रक्तमोक्षण का प्रयोग किया जा रहा है वह भी बहुत ही सुरक्षित ढंग से ।
रक्त मोक्षण से इनरोगों मे बहुत ही आश्चर्यजनक लाभ प्राप्त होता है--
  • ग्रधृसी यानि कुल्हे से टांग तक अह्सहनीय दर्द होना (Sciatica)
  • वातरक्त यानि गठिया बाय , सीरम युरिक एसिड का बढना (Gout, Serum Uric acid )
  • उच्चरक्तचाप यानि ब्लड्प्रैशर का अधिक होना (High blood Pressure)
  • विभिन्न प्रकार के चर्म रोगों जैसे की सोरीओसिस, एक्जिमा, एलर्जी , चेहरे की फ़ुन्सीयां आदि ।
  • प्लीहावृद्धि यानि तिल्ली का बढना 
  • लीवर का बढना आदि ।
रक्तमोक्षण के मुख्य दो प्रकार होते हैं  , शस्त्रद्वारा रक्तमोक्षण यानि  किसी शस्त्र द्वारा काटकर रक्त का निकलना और शस्त्र रहित यानि जलौका (जोंक ) द्वारा रक्त का निकलना ।

शरद ऋतु मे रक्त का निकलना सबसे उत्तम होता है  (in the months of Aswin and Karitka) , फ़िर वैद्य किसी भी ऋतु मे युक्ति पूर्वक रक्त मोक्षण करवा सकता है ।
अधिक जानकरी के लिये आप मुझसे मेरी आयुर्वेदशाला मे संपर्क कर सकते हैं ।

गुरुवार, 10 मार्च 2011

Body Building Medicines, So called Proteins Powders से बचकर रहें । समाधान: Ayurvedic Sports Medicines.

अपने क्षेत्र के ज्यादातर नवयुवक आजकल अपनी शरिरीक बनावट को मजबूत बनाने के लिये और शरीर को सिक्स पैक बनाने के लिये अकुशल लोगो से दवाईयां ले रहे हैं । कुछ ही दिनो मे शरीर चम्ताकारी रुप् से बलवान होने लगता है । लेकिन क्या कभी आपने यह सोचा है कि जो आप दवाईयां ले रहे है वो है क्या??
इतनी जल्दी वो असर कैसे करती हैं ? क्या इनका कोई नुकसान है ? कभी नही सोचते !!!
आईए सत्य की तरफ़ चलते हैं --
अकुशल लोगो द्वारा चलाया जा रहा यह रैकट भोले भाले नवयुवको को मोत की तरफ़ ले जा रहा है ।
क्या खा रहे है आप?--- ज्यादातर बोडी मेकिंग पाऊडर मे प्रोटीन होता है लेकिन लोग इसमे एनाबोलिक स्टेरोईड्स मिलाकर बेच रहे हैं या साथ मे खाने के लिये दे रहे है ।

ऎनाबोलिक स्टेरोईड्स क्या हैं---
Anabolic steroids, technically known as anabolic-androgen steroids (AAS) or colloquially simply as "steroids" or "'roids", are drugs which mimic the effects of the male sex hormones testosterone and dihydrotestosterone. They increase protein synthesis within cells, which results in the buildup of cellular tissue (anabolism), especially in muscles. Anabolic steroids also have androgenic and virilizing properties, including the development and maintenance of masculine characteristics such as the growth of the vocal cords and body hair. The word anabolic comes from the Greek ἀναβολή anabole, "that which is thrown up, mound", and the word androgenic from the Greek ἀνδρός andros, "of a man" + -γενής -genes, "born".
Anabolic steroids were first isolated, identified and synthesized in the 1930s, and are now used therapeutically in medicine to stimulate bone growth and appetite, induce male puberty, and treat chronic wasting conditions, such as cancer and AIDS. The American College of Sports Medicine acknowledges that AAS, in the presence of adequate diet, can contribute to increases in body weight, often as lean mass increases, and that the gains in muscular strength achieved through high-intensity exercise and proper diet can be additionally increased by the use of AAS in some individuals.[2] (विकिपिडिया)

डाक्टर इस स्टॆरोईड्स का प्रयोग कुछ गिनीचुनी बिमरियों जैसे की मसल वास्टिगं, ऐड्स,कैंसर आदि मे करते हैं वो भी उसकी मात्रा का हिसाब किताब लगा कर । लेकिन आप तो उसको पता नही कब से खा रहे है और वो भी बिना किसी डाक्टर की देख रेख के । एनाबोलिक स्टॆरोईड्स एक तरह से अपने शरीर मे प्रोटिन बनाने की क्रिया को बहुत ही तेज कर देते हैं जिससे शरीर की पेशीयो मे फ़ैलावट आ जाती है , मेल सेक्स हार्मोन को उत्तेजित करने के कारण छाती की फ़ुलावट , आवाज को भारी बनाना,आदि हो जाता है ।



अत्यधिक प्रयोग से हानियां -- संक्षेप मे-- दिल की बिमारियां , ब्लड प्रैशर का बड़ना, बांझपन, सिर के बालों का झड़ना, लिवर की बिमारियां , चेहेरे या शरीर पर फ़ुन्सियों का होना, यानि की मोत को न्योता देना ।



यदि आप स्वस्थ और सुख से जीना चाहते है तो आज ही इस तरह की दवाईयों को छोड़ दे । 
इसका एक समाधान है --  आयुर्वेदिक स्पोर्ट्स मेडिसन - प्राचीन काल से चली आ रही आयुर्वेदिक दवाईयों को अपनाएं , रसायन और धातुपुष्टकर औषधियों का प्रयोग करके आप वही रिज्ल्ट्स प्राप्त कर सकते हैं जो आप इन जहरीली दवाओं के सेवन से करते हैं वो भी बिना नुकसान के । बस संयम रखे और आयुर्वेद को अपने जीवन अपनाएं । 
शहर मे आयुर्वेद के नाम से भी स्टेरोईड्स युक्त दवाईयां मिल रही है,उससे भी बचकर रहें किसी कुशल और क्वालीफ़ाईड वैद्य से ही सलाह लेकर आयुर्वेदिक औषधियों का सेवन करें ।



गुरुवार, 3 मार्च 2011

Ayurvedic life in the months of March and Early April ,बसंत ऋतु मे आहार विहार

आचार्य सुश्रुत के अनुसार मीन और मेष राशि तथा   फ़ाल्गुन मास और चैत्र मास यानि आखिरी फ़रवरी पूरा मार्च और शुरु के अप्रैल के १५ दिनो को मोटे रूप से बसंत ऋतु के नाम से जाना जाता है ।
यह ऋतु आदान काल यानि बल को घटाने वाली होतीहै ।
सर्दियों मे जमा हुआ कफ़ इस ऋतु मे सूर्य की किरणॊ के कारण पिघलने लगता है , जिसके कारण सबसे पहले अग्निमांद यानि हाजमे की खराबी होती है । अग्निमांद होने के कारण अनेक आमज व कफ़ज विकारों का इस ऋतु मे आरम्भ होता है । उनमे से मुख्य हैं -
अग्निमांद --- (Digestive Problems), अम्लपित्त, भुख न लगना, खाने का पाचन ठीक से ना होना, गैस बनना

ज्वर----- (Fever) विभिन्न ज्वर

श्वास-- (Asthma, Allergy etc)  सर्दी , जुकाम, खांसी, नजला

आमवात-- शरीर के जोड़ों मे दर्द व सुजन (Joints Pain)


त्वचा विकार--  शीतपित्त (Urticaria), पित्ति उछलना, खुजली होना आदि

ये सभी रोग कफ़ के अधिक हो जाने के कारण होते हैं ।
यह ऋतु शरीर के शोधन के लिये बहुत ही उपयुक्त होती है । किसी उपयुक्त वैद्य की देखरेख मे  वमन कर्म यानि उल्टियां करना, बहुत ही उपयुक्त होता है ।
इसके अलावा इस ऋतु मे लघु और रुक्ष आहार लाभकारी होता है जैसे की -- पूराने अन्न जौ, पूराना चावल, बजारा, मूंग, कूल्थी , अरहर, पालक, बैंगन, सहिजन , मेथी , परवर, लहसून, अदरख, प्याज, मूली , गाजर, हल्दी,  अनारदाना,  पेठा, बकरी काअ दूध, कड़ी, बकरे का मांस, सूखी मछलियां, तन्दुरी चिकन, केदड़ा, अदरख सिद्ध जल, अजवायन, जीरा, कालीमिर्च, सरसों  इलायची और शहद  सदा ही सेवनीय होती हैं ।
 इसके अतिरिक्त  व्यायाम , उबटन, लेप, स्वेदन, नस्य , कूंजन क्रिया ( सुबह कोष्ण लवण युक्त जल को पीकर उल्टी करना) , आदि लाभकारी होते हैं ।
असेवनीय--- नए अन्न, उड़्द,  सुखे फ़ल मेवे आदि, भैंस का दुध,  दही, लस्सी, आईसक्रीम, चीच, पनीर, खोया, मक्खन,  शीतल जल, तले हुए भोज्य पदार्थ मिठाई आदि ।
दिन मे सोना और अधिक मैथुन करना भी इस ऋतु मे निन्दनीय है ।













 

रविवार, 20 फ़रवरी 2011

Renal Stone ,अश्मरी , गुर्दे की पथरी

अश्मरी रोग से प्राय: मुत्राशय की पथरी से लिये जाता है , अश्मरी का अर्थ पत्थर होता है ।

स्वरूप तथा लक्षण--
आजकल अधिकतर लोगो मे स्टोन मिलना आम हो गया है कारण है दूषित खान पान । कुछ लोगो मे सहज ही पथरी बनने की प्रक्रिया रहती है  उनके गुर्दों मे छोटी छोटी पथरियां बनती ही रहती हैं । जिनको सहज रुप से पथरी बनने की संभावना रहती है उनको विशेष रुप से अपने खान पान पर ध्यान देना चाहिये ।
प्रमुख लक्षण--
पेडु मे दर्द होना और दर्द का नीचे टाँगो और अण्डकोष तक जाना ।
दर्द का पीछे कमर तक अनुभव होना ।
साक्थिसाद -- टाँगो मे भारीपन और थकावट
मुत्र कभी कभी रुक कर आता है ।
आत्यिक अवस्था मे तीव्र पीडा का साथ उल्टियाँ भी आ सकती हैं साथ मे मंद ज्वर की भी आशंका रहती है ।

इन लक्षणों का मिलना पथरी का निदान करता है ।
लेकिन साईज और जगह का पता लगाने के लिये यु एस जी करवाना आवश्यक होता है ।

चिकित्सा--
आयुर्वेद्कि चिकित्सा मुख्य रुप से  पथरी की जगह ( पथरी कहाँ बनी हुई है ) और  उसके साईज पर निर्भर करती है । मैने ८ मि. मि. तक की पथरियों को आयुर्वेदिक तरीके से निकाला है ।
आहार--  जिनको यह रोग है वो हरी पत्तेदार सब्जीयाँ, टमाटर, अमरुद, पालक , पनीर आदि का परहेज रखें ।
ज्यादा भारी खाना और  तला हुआ खाना भी आपको तंग कर सकता है ।
ज्यादा चलना फ़िरना और ज्यादा काम करना भी आपको तंग कर सकता है ।
फ़िल्टर का पानी फ़ायदेमंद रहता है।
खाने मे मूली, गन्ना, सोडा वाटर उपयोगी रहता है ।
आयुर्वेदिक औषधियों मे निम्नलिखित उपयोगी रहती हैं ---

  1. गोक्षूरादि गुग्गलु
  2. कुमार्यासव
  3. शिवाक्षार पाचन चुर्ण
  4. श्वेत पर्पटी
  5. गोक्षुर चुर्ण भेड़ के दुध के साथ
  6. कुल्थी का क्वाथ
  7. मंजीठ का चुर्ण
  8. वरुणादि क्वाथ
  9. त्रिविक्रिम रस
  10. मूली क्षार
  11. पलाश क्षार 
  12. गिलो सत्व   आदि

शनिवार, 5 फ़रवरी 2011

रसोन क्षीर पाक ! आप के लिये बहुत ही जरुरी ।

रसोन क्षीर  पाक क्या है ?  रसोन पाक कुछ नही बल्कि लहशुन से पकाया हुआ दूध है ।
मेरे लिये यह क्यों जरुरी है-
क्या आपको हृदय रोग यानि कोलेस्ट्रोल बढा हुआ है  , क्या आपका युरिक एसिड बड़ा हुआ है (गाउट) , क्या आप एसिडिटी से परेशान है । क्या पेट मे गैस बनती है ।  क्या आपको बादी की बवासीर है ? , क्या आपकी कामेच्छा कम हुई है ? क्या आपका ब्ल्ड प्रैशर कम या ज्यादा रहता है ? ,क्या आपके जोड़ों मे दर्द है । क्या आप ज्यादा देर बैठते हो और मानसिक कार्य ज्यादा करते हैं ?
क्या आपकी कमर मे दर्द रहता है ? , क्या आपकी एक टांग मे दर्द रहता है ?
यदि  हाँ
तो मै समझता हूँ कि आपको रसोन क्षीर पाक की सख्त जरुरत है ।
लहसून की उत्पत्ति --  जिस समय गरुड ने इन्द्र के पास से अमृत हरण किया था उस समय  जो अमृत धरती पर बुन्दॊ के रुप मे गिरा , उसी से लहसून की उत्पत्ति हुई  ।

लहसून साक्षात अमृत तुल्य है । इसका सदा सेवन कीजिये ।

लशुन दोषों का उत्सारक, मेधा का प्रसारक, निर्बलता का संहारक, कफ़ का छेदक, वात का भेदक, भग्न अस्थियों का संमेलक, रक्तवर्धक तथा पित्त का प्रेरक है । लभु होता हुआ भी औषधियों का गुरु है । इन अनेक विध गुणो से युक्त लशुन मे , हे विधाता !! तू ने न जाने क्यों यह दुर्गंध दोष रख दिया है ? (सि. भै. म. मा. )
जिनको रक्तपित्त की प्रवृति है बस उन लोगो को छोड कर और गर्भवती को छोड़ कर लगभग सभी को लहसून का सेवन करना चाहिये ।
लशुन का दुध मे पकाकर ही क्यो सेवन करें ???
लशुन बहुत ही गरम और तीक्ष्ण होता है , बस दूध मे पकाकर इसकी उष्णता और तीक्ष्णता कुछ कम हो जाती है । और  बस आप शुरु तो किजीये !
कैसे बनाएं रसोनक्षीर पाक ??
घर मे जो लशुन होता है उसकी कलियो कॊ छील लिजीये  लशुन की पोथी मे से एक एक कली छीळ लिजिये और पहले दिन३ कलियों को अच्छी तरह पीस कर  अपनी इच्छानुसार दूध लेकर और उसमे उतना ही पानी लेकर कम आंच पर उबलना शुरु करे जब दूध शेष रहे तो छान कर पी लिजिये ।
अपनी इच्छानुसार हर रोज इसमे एक कली बडाते रहिये और  दूध को पीते रहिये  । आप १० कलियों तक बड़ाएं और उसके बाद फ़िर एक एक कम करते चले । बस यही रसोन क्षीर पाक है ।
रसोन क्षीरपाक पीते रहिये और सदा के लिये जवान बने रहें ।
अधिक जानकारी के लिये आप मुझे मेल कर सकते हैं ।