मंगलवार, 29 दिसंबर 2009
Gall bladder Stone , पित्ताश्मरी,, पित्त की थैली की पथरी
यदि पथरी ज्यादा बडी है (greater than 11mm ) तो उसका उपचार शल्य क्रिया से उचित है , आयुर्वेद मे पित्ताश्मरी का औषधियों द्वारा उपचार संभव है , जरुरत है तो केवल संयम की ।
पथ्य, अपथ्य व्यवस्था--- विरेचक आहार, सादा व हल्का खाना, मको का शाक, निंबु का रस, संतरे का जुस, परवल की सब्जी सदा ही सेवनीय है ।, तला हुआ भोजन, बार-बार खाना, भारी व विष्टम्भी खाना, रात्रि जागरण, ज्यादा कार्य करना, पेट भर कर खाना आदि इन सब का परहेज रखें ।
योगासन-- १,जानु-स्पृष्ट-भाल-मेरुद्ण्डासन
२. पवन-मुक्तासन
आयुर्वेदिक चिकित्सा-- कुटकी चुर्ण
फ़लत्रिकादि चुर्ण
निम्बू का रस,त्रिकटु चुर्ण
आरोग्य वर्धनी वटी
जैतुन का तैल
विशेष-- रात्रि मे विरेचक औषधि ले और केवल दाईं करवट सोयें ।
अधिक जानकारी के लिये मुझे मेल करें ।
मंगलवार, 15 दिसंबर 2009
सुखी खाँसी या एलर्जी वाली खाँसी
कारण- रुक्ष शीत व कैषेले पदार्थों का सेवन, अल्पाहार या केवल एक रस वाले द्र्व्यों का सेवन करना, उपवास,अतिमैथुन, अधारणीय वेगों() को धारण करना, धुल, धुआँ आदि का सेवन ।
पथ्य-----वमन, शाली चावल, मूँग,कुलथी, दुग्ध, मुन्नका, अडुसा, सोंठ, मरिच, पीपर, मधु, धान की खील, इलायची, गोमुत्र आदि ।
अपथ्य---दुषित वायु, धुल, धुँआ, अधिक पैदल चलना, भारी खाना, मल-मुत्रादि वेगों को रोकना, शीतल अन्नपान, आदि ।
सामान्य चिकित्सा योग----
सितोपलादि चुर्ण, श्रंग्यादि चुर्ण, टंकण, मुलेठी, द्राक्षारिष्ट, पिप्ल्यासव, कनकासव, बनफ़्सा, लवंगादि वटी, एलादि वटी, वासारस भावित हरिद्रा खण्ड, च्यवनप्राश,अगस्त्य हरितकी, आदि ।
शुक्रवार, 11 दिसंबर 2009
सर्दियों मे त्वचा व बालों की देखभाल
आयुर्वेद मे इन जैसी परिस्थितियॊं का सामना करने के लिये शीत ऋतुचर्या मे एक विशेष आहार-विहार का वर्णन किया गया है । शीत ऋतु मे बाहर की सर्दी अपने शरीर की ऊष्मा को शरीर के अन्दर धकेल कर जठराग्नि(Digestion) को प्रदिप्त कर देती है , जिसके कारण भुख अधिक लगती है अत: इस ऋतु मे शरीर गुरु आहर(Heavy Diet) पचाने मे समर्थ होता है ।
सर्दियों मे चिकने पदार्थ,अम्ल, लवण रस युक्त आहार, मांसाहार , दुध के बने आहार , नये चावल से बना भात, व अनुपान के रुप मे शहद या मदिरा लेना हितकर है ।
विहार- तेल मालिश, बादम तैल, तिल तैल, नारियल तैल आदि की धुप मे बैठकर मालिश करे और त्रिफ़ला चुर्ण से शरीर को रगडें, उसके बाद कोष्ण जल मे स्नान करें।
चेहेरे पर ताजे दुध के झाग लेकर उसमे सुक्ष्म लोध्र चुर्ण मिलाकर चेहेरे पर धीरे धीरे हल्के हाथों से स्क्रब करें, यह एक कुरुरती स्क्र्ब का काम करेगा और चेहेरे की रुक्षता को दुर करेगा तथा एक विशेष चमक चेहेरे पर लाएगा।
बालों की रुक्षता दूर करने के लिये बालॊं को ग्वारपाठे के रस से रगड्ने के बाद बालॊं को गर्म पानी से धो दें , या लस्सी मे त्रिफ़ला चुर्ण मिलाकर बालों को धोएँ, या सरसॊ का तैल एक चमच , सुहागा आधा चमच और निंबु का रस दो चमच इन सब को मिलाकर धुप मे बालॊ पर रगडें और एक घन्टे बाद शैम्पु से बालो को धो ले , इससे बालॊ की रुसी(Dandruff) से छुटकारा मिलेगा ।
मंगलवार, 8 दिसंबर 2009
प्लीहा वृद्धि, तिल्ली का बढना(Spleenomegaly)
आहार-विहार व्यवस्था-- पथ्य- साठी चावल,जॊ,मुंग,दुध, गोमुत्र,आसव, अरिष्ट, शहद
अपथ्य-मांसाहार,पत्तेदार शाकसब्जीयां,अम्ल्पदार्थ,विदाही अन्न, भारी खाना, अधिक जल पीना आदि,
व्ययाम करना, अधिक पैदल चलना, सवारी करना, दिन मे सोना आदि बिल्कुल भी न करें ।
आयुर्वेदिक चिकित्सा -- विरेचन, रक्तमोक्षण,क्षार और अरिष्टों का सेवन
सामन्य चिकित्सा- कुमार्यासव
कालमेघासव
निम्बुक द्राव
हिन्गुद्राव
पलाश पंचांग क्षारभस्म
रोहितिकारिष्ट
लोकनाथ रस, आरोग्यवर्धनी वटी, सुदर्शन चुर्ण, कुटकी चुर्ण, अर्क मको,
शुक्रवार, 6 नवंबर 2009
हिक्का रोग, हिचकी,
मंगलवार, 3 नवंबर 2009
आमवात
आहार - विहार व्यवस्था- जल्दी पचने वाला, लघु, उष्ण, और कम मात्रा मे आहार ग्रहण करे, लस्सी, चावल, ठन्डा पानी, कोल्ड ड्रिन्क्स, भारी खाना, तला हुआ भोजन, आदि से परहेज रखें। परवल और करेले या अन्य कटु साग सव्जीयों का प्रयोग ज्यादा करें , हमेशा कोष्ण जल का प्रयोग करें।
पथ्य----- जौ, कुल्थी की दाल, करेला, बथुआ, परवल, एरण्ड का तैल, अजवायन,पराने चावल, शहद, लहसून, सोंठ, मेथी, हल्दी का नित्य सेवन करें।
अपथ्य-------वेगावरोध,चिन्ता करना, शोक करना, दूध गुड, दुध मांस, दुध मछली, का सेवन, रात मे जागना, भारी खाना, अत्यधिक चिकने पदार्थों का सेवन।
आमवात मे हमेशा गर्म बालु रेत की पोटली बनाकर प्रभावित अंग को सेके और एक घन्टा तक हवा न लगने दें।
आयुर्वेदिक चिकित्सा---
अलम्बुषा चुर्ण, अजमोदादि चुर्ण,
अग्नि तुंडी वटी, चित्रकादि वटी, आमवातारि वटी ।
महारास्नादि क्वाथ, दशमूल क्वाथ
योगराज गुग्गलु, अमृतादि गुग्गुलु, सिँह नाद गु, ।
महावातविधंसक रस, बृहत वात चिन्तामणि रस, वातगजांकुश रस, समीर पन्नग रस, ।
शुक्रवार, 17 जुलाई 2009
वातरक्त,गठिया बाय,Gout,serum uric acid का बढना
सोमवार, 6 जुलाई 2009
हृदय रोग ( all types of heart diseases)
शनिवार, 4 जुलाई 2009
बालोँ का झड़ना,उड़ना,सफेद होना!
शैली से भी बालोँ की स्मस्याएँ पैदा होती है| सबसे पहले तो साबुन शैम्पु
का प्रयोग बंद कर दे बाल धोने के लिये लस्सी और बेसन का प्रयोग करेँ;
खाने मे दुध और हरी सब्जीयोँ का ज्यादा प्रयोग करेँ| आयुर्वेदिक
चिकित्सा- लगाने के लिये- भृङ्गराज तैल और पंचतिक्त
घृत दोनोँ मिलाकर दिन मे एक बार; खाने के
लिये-प्रवाल पिष्टी-250 मि ग्रा धात्री लौह-250 मि ग्रा पीने
के लिये भृंगराजासव खाना खाने के बाद;
सोमवार, 29 जून 2009
शीतपित्त, पित्ति उछलना (Urticaria)
शीत पित्त मे त्वचा पर भिड. , ततैया, के काटने जैसे शोथ युक्त लाल चकते दिखाई पडते है ,जिनमे अत्यधिक खुजली और जलन होती है ।
आधुनिक चिकित्सा विग्यान मे इसकॊ एलर्जी से उत्पन्न माना जाता है । आयुर्वेद मे यह रोग आमाशय से उत्पन्न माना जाता है ।
आयुर्वेदिक चिकित्सा---
अजवायन २ ग्रा. और उतना ही पुराना गुड मिलाकर गोलिया बना लो , इनको दिन मे दो या तीन बार ताजे पानी के साथ ले।
हरिद्रा खण्ड ----- दो दो चमच दिन मे दो बार ताजे पानी के साथ ।
सुतशेखर रस- २५० मि. ग्रा.
धात्री लोह --- २५० मि. ग्रा.
अविपत्तिकर चुर्ण-- २ ग्रा.
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खाना खाने से पहले दो बार
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सारिवद्यासव--- २० मि. लि. तथा उतना ही जल मिलाकर
---------- खाना खाने के बाद दो बार।
इन योगों को लगातार ३० दिनों तक सेवन करे और रोग से सदा के लिये छुटकारा पायें।
शनिवार, 27 जून 2009
गर्भिणी परिचर्या (Ante natal care)
किया गया है इसी को गर्भिणी परिचर्या का नाम दिया गया है | यदि इसका
अनुपालन किया जाता है तो भविष्य मे होने वाले विभिन्न रोगोँ जैसे
गर्भस्राव,पात,शूल,गर्भ का विकास न होना,सीजेरियन डिलिवरी आदि उपद्रवोँ
से बचा जा सकता है| यह परिचर्या बहुत ही आसान और युगानूरुपी
है,आसानी से इसे अपनाया जा सकता है|
अधिक जानकारी के लिये आप मुझे मेल कर सकते है|
बुधवार, 17 जून 2009
परिणाम शूल, अम्लपित्त(Hyperacidity, Ulcers)
आहार विहार पथ्य व्यवस्था-- अपथय- चावल, चने की दाल, चाय, धुम्रपान,मदिरा पान,बार बार खाना,बिना भुख के खाना,
फ़ास्ट फ़ूड, दिन मे सोना,शारिरीक कार्य न करना,मसालेदार व तले हुए भोजन को करना, मानसिक अवसाद आदि
पथ्य------ भोजन मे दुध का प्रयोग करना, सादा खाना, समय पर खाना खाना, फ़लो का सेवन करना,आदि।
आयुर्वेदिक चिकित्सा व्यवस्था-------
अविपित्तकर चुर्ण-- २ ग्रा.
धात्री लौह -- ५०० मि. ग्रा.
सूतशेखर रस---- २५० मि. ग्रा.
शंख भस्म------ २५० मि. ग्रा.
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यह एक मात्रा है , खाना खाने से पहले शहद मे मिलाकर दिन मे दो बार लें।
फ़लासाव---- २० मि. ग्रा. तथा उतना ही ताजा पानी मिलाकर खाना खाने के बाद दो बार
एक महीने तक इस योग का सेवन करें। व पथ्य पालन करें। और इस रोग से जिन्दगी भर के लिये छुटकारा पायें।
सोमवार, 15 जून 2009
फलघृतं बन्ध्यादोषे
फल घृतपान के नियम---सिद्ध घृत हो जाने पर इस घृत को मिट्टि या तांबे के बर्तन मे शुभ तिथि , पुष्य नक्षत्र मे रख देते हैं, इस घृत को शुभ तिथि मे जब पुष्य नक्षत्र हो तब स्त्री और पुरुष दोनो को १० से १२ ग्रा. दिन मे दो बार गाय के
दुध के साथ पान प्रारम्भ कर देना चाहिये ।
फलघृत के मुख्य घटक द्रव्य---गोघृत, त्रिफ़ला, दारुहल्दी, कुटकी, विडंग,मोथा,इंद्रायण,वचा,महामेदा,काकोली,क्षीरकाकोली,अन्नतमूल,प्रियंगु के फूल,कमल,श्वेत चन्दन,मालती के फूल,दन्तीमूल आदि।
फलघृत प्रचलित कम्पनियों द्वारा बना बनाया भी बाज़ार मे उपल्ब्ध है ।
(शा.सं.म.)
गुरुवार, 11 जून 2009
दान्त और मसूडो पर वर योग
सोमवार, 1 जून 2009
ग्रहणी रोग, बार-बार मल त्याग होना,(IBS) (Amoebiasis,Dysnetry), ()
आहार मे फ़लो का ज्यादा प्रयोग करे। और बे्ल का मु्रब्बा सदा ही हितकर होता है । तले हुए भोज्य पदार्थ और फ़ास्ट फ़ुड को सदा के लिये बाय बाय कर दे ।
साधारण और असरकारी आयुर्वेदिक चिकित्सा==
अविपत्तिकर चुर्ण= आधा चमच खाना खाने से पहले दो बार
वत्सकादि क्वाथ घन ५०० मि. ग्रा.
कुटकी चुर्ण १५० मि. ग्रा.
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खाने के बिल्कुल बीच मे ताजे पानी के साथ दिन मे एक बार( ।
हिंगवष्टक चुर्ण-- आधा चमच खाना खाने के बाद कोष्ण जल के साथ दो बार
बुधवार, 27 मई 2009
रक्तज अर्श या खुनी बवासीर (Bleeding Piles)
चिकित्सा व्यवस्था--
१ अविपत्तिकर चुर्ण- आधा चमच खाना खाने से पहले दो बार ॥
२ ईसबगोल चुर्ण- रात को कोष्ण दुध या पानी के साथ एक चमच
३ अभयारिष्ट २० मि. लि. और समान मात्रा मे जल मिलाकर खाना खाने के बाद दिन मे दो बार
४ शुद्ध रसांजन ४मि. ग्रा. शु्द्ध स्वर्ण गै्रिक २५० मि. ग्रा. और कुकरोंधा का रस मिलाकर गोली बना ले , एक एक गोली दिन मे दो बार ताजे पानी के साथ या लस्सी के साथ ले ।
रविवार, 24 मई 2009
(फ़ेलोपियन टुयुब ब्लोकेज को ठीक करने के अयुर्वेदिक तरीके) Steps to unblock Fallopian tubes blockage in ayurveda
ट्युब ब्लोकेज क्यों होती है ----इसके व्यापक कारण होते है मुख्य रुप से निम्न्लिखित कारण है ।
१ जन्मजात
२ आघात के कारण
४, इन्फ़ेक्सन के कारण
५.केल्सियम जमा होने के कारण
६ पेलविक शोथ जन्य रोगों के कारण
७ डिम्ब वाहिनि मे अर्बुद( out growth, cysts cancer etc) होने के कारण
आयुर्वेद चिकित्सा कैसे ब्लोकेज को ठीक करती है ---
१ फ़ेलोपियन ट्युब के शोथ को ठीक करके।
२ इन्फ़ेक्सन को दूर करके ।
३ गर्भाशयगत अंगो का विकास करके और उनको स्वस्थ करके।
४, ट्युब मे हुई व्रणवस्तु(scar ) को मृदु करके उसको दुर करता है और वाहिनि को स्निग्ध करता है ।
आयुर्वेदिक चिकित्सा व्यवस्था--
१ स्थानिक: विभिन्न आयुर्वेदिक औषधियों का लेप और पिचु धारण (tampons and douches)-
२ खाने के लिये आयुर्वेदिक औषधियाँ ।
३योग एवं आसन
४ पंचकर्म - उत्तर बस्ति , स्नेहन, स्वेदन आदि
५आहार एवम विहार
अधिक जानकारी के लिये आप मुझे संपर्क कर सकते है ।
सोमवार, 27 अप्रैल 2009
मधुमेह यानि डायबेटीज
भुने हुए अन्न प्रचुर मात्रा मे प्रयोग करने चाहिये , यदि दांत मजबुत है तो भुने हुए अन्न जैसे कि चनो को चबा चबा कर खाने चाहिये और यदि दांत कमजोर है तो सत्तु बना कर प्रयोग करना चाहिये।
मधुमेह के रोगियों के लिये लस्सी एक बहुत ही उपयुक्त पेय है इसको जितना प्रयोग कर सकते हो तो करो ।
जितना व्ययाम कर सको उतना करो । हर रोज शरीर की मालिश करने के बाद स्नान करना भी बहुत ही लाभकारी है ।
य तो थी आहार विहार की बात , आयुर्वेदिक औषधियों मे , शिलाजीत, सुदर्शन चुर्ण, चिरायता, गिलोय , करन्ज बीज चुर्ण और अश्वगन्धा चुर्ण, बसन्त कुसुमाकर रस, मेथी दाना, जामुन के बीज, मामजक, विजयसार की लकडी, डोडी पनीर, आदि बहुत सारी औषधियाँ वैद्य की सलाह से प्रयोग करें ।
बुधवार, 22 अप्रैल 2009
ग्रीष्म ऋतु आहार विहार
का बहुत ही अच्छा वर्णन किया गया है । आज कल गरमी जोरों पर है । इस काल मे हमारे आचार्य क्या कहते है यह देखेते है _
ग्रीष्म ऋतु --दो महीने यानि बैशाख और जयेष्ठ को ग्रीष्म ऋतु माना गया है । राशि के हिसाब से वृष और मिथुन राशि मे जब सुर्य होता है तो वह काल ग्रीष्म काल होता है ।
ग्रीष्म ऋतु मे अति तीक्ष्ण किरणों वाला सूर्य संसार से स्नेह को नष्ट करता है ; जिससे प्रतिदिन मनुष्यों मे श्लेष्मा ( कफ़) घटता है और वायु बढती है इसलिये इस ऋतु मे नमक, कटु,तथा अम्ल रस, व्ययाम, और सूर्य की किरणो का त्याग करना चाहिये॥ ( अ० ह्रु०)
सेवनीय- मधुर , लघु, स्निग्ध, और शीतल एवं द्रव पदार्थ।
अतिशय शीतल जल से स्नान करना और जॊ से बने सत्तु को खाना।
असेवनीय-- मद्य का सेवन, ( यदि करना है तो भरपुर पानी मिलाकर करें) , घन मांस रस ( गाढा मास का सूप) या रुक्ष मांस, और मैथुन कर्म का सेवन मत करे
गुरुवार, 16 अप्रैल 2009
कमर दर्द, कटि शूल, ( Back pain)
कमर दर्द आजकल एक सामान्य समस्या है , कमर दर्द के अनेक कारण होते है , यदि हम मोडरन सांईस के हिसाब से कारण बताएं तो अनेक कारण है । लेकिन आयुर्वेद के हिसाब से कमर दर्द मुख्य रुप से वात कफ़ज होता है ,
कमर दर्द से बचने के सामन्य उपाय-- कभी भी झुक कर भार मत उठाएं, आगे की तरफ़ झुक कर काम न करें, हमेशा एक स्थिति मे मत बैठें रहे। सोने के लिये सख्त बैड का प्रयोग करें। वात प्रकोपक आहार विहार से परहेज रखें जैसे की , दिन मे चावल, कढी, आइसक्रीम, आदि मत ले
कमर दर्द को ठीक करने के लिये आयुर्वेदिक औषधियाँ-
यह एक परिक्षित योग है , बृहत वात चिन्ता मणि रस- १२५ मि. ग्रा.
योगराज गुग्ग्लु ४०० मि. ग्रा.
शुद्द शिलाजीत २५० मि. ग्रा.
यह एक मात्रा है सुबह शाम खाना खाने से पहले ( लगभग एक घन्टा पहले) दो बार शहद मे मिलाकर
बलारिष्ट २५ मि. लि. + समान मात्रा मे पानी मिलाकर दो बार खाना खाने के बाद ।
स्थानिक प्रयोग- महाविषगर्भ तैल और महानारयण तैल दोनो मिलाकर कमर की मालिश करना
मंगलवार, 14 अप्रैल 2009
यकृत रोगों की अपुर्व औषोधि काकमाची( मकोय) Soleanum nigrum
दैनिक चिकित्सा मे मै इसको भरपुर उपयोग मे लाता हूँ । लिवर को रोगो मे इसका उपयोग बहुत ही उपयोगी है ! जहाँ एक से एक महंगी औषधियाँ काम नही करती यह काम कर जाती है ।
गुण तथा दोष कर्म--- तिक्त तथा कटुरस,स्निगध, उष्ण, रसायन, शुक्रजनन, तथा त्रिदोषशामक
लिवर रोगो मे इसको देने का तरीका---शुद्ध भूमि से इसके पौधे को जड समेत उखाड कर अच्छी तरह से धो लें। इसके बाद इसको कुट कर इसका रस निकाल ले । एक मिट्टी कि हाण्डी लेकर इस रस को तब तक मन्द आँच पर तब तक गर्म करें जब तक की इसका रँग हल्का गुलाबी नही हो जाता ।
अब इसकॊ करीब ५० मि. लि. लेकर इसमे ३ काली मिर्चों का चुर्ण डालकर पी जाएं
यदि आपकी जठराग्नि तीव्र है तो इसकॊ खाली पेट ले नही तो खाना खाने के १ घन्टे बाद ले । दिन केवल एक बार ले
ध्यान देने योग्य बात यह है कि स्वरस हर रोज ताजा उपयोग करें। हर रोज बनाये और प्रयोग मे लाएं।
शुक्रवार, 10 अप्रैल 2009
संधिवात एवं स्थुलता
looked very good in public as well personal interest.I am 48 years old
professor in college, having weight of about 80 kg with height165
cm,suffering from slight osteoarthritis,obesity, tiredness,a little
disturbance in digestion though usually appetite is good.Kindly advise
me to loose weight, become free,fit and full of vitality.At the end of
the day I usually feel tired.I sleep late night about 12pm due to my
study habits.This is the story and pl.diagnose to get relief
with regards and best wishes for yr blog......
बहुदा मैने देखा है कि सन्धिवात और स्थुलता का आपस मे घनिष्ठ सम्बंध है । मोटापे के कारण सन्धिवात हो जाया करता है
सबसे पहले तो आप अपनी दिनचर्या को ठीक किजिये । फ़ास्ट फ़ुड, ज्यादा तली हुए पदार्थ, बार-बार खाना और ज्यादा चाय पीना इन सब को छोड दिनिये। योग किजिये ।
आयुर्वेदिक चिकित्सा--- स्थानिक प्रयोग पंचगुण तैल और महामाष तैल दोनो मिलाकर और उसमे अश्व्गन्धा चुर्ण मिलाकर उसकी लुग्दी बना ले उसको गर्म करके रोटी कि तरह की सेप बनाकर प्रभावित स्थान पर लगा दें और उपर से कोई कपडा बान्ध दे । अगर आप ये सब कुछ ना कर सकते हो तो केवल उपरोक्त तैलों से मालिश करने के बाद सेक करें
सिहँनाद गुगुल वटी ५०० मि. ग्रा.
कुमार्यासव एवम महारासनादि क्वाथ दोनो १० -१० मि.लि. तथा समान मात्रा मे पानी मिलाकर (जितना पुराना मिल जाये उतना ही अच्छा )
सुबह शाम खाना खाने के बाद दिन मे दो बार
रात को सोते समय एरण्ड तैल एक चमच दुध मे मिलाकर ले ।
इसके अतिरिक्त आप दिन मे कभी मत सोये, हमेशा पानी कोष्ण और भोजन करने से पहले ले , बाद मे पानी मत पियें
क्योकि उम्र बढ्ने के साथ साथ वात दोष की भी वृद्दि होती है अत: आप लगातार इन औषधियों का सेवन किजिये अवश्य ही आपको स्वास्थय लाभ प्राप्त होगा
मल्टीपरपज औषधि रसोंत ( रसाञन्जन) Extract of berberis aristata
गुण-- यह कटु , तिक्त, कफ़ , विष तथा नेत्र रोग को दुर करने वाला , उष्ण वीर्य , रसायन , छेदन, एवम व्रण सम्बन्धित रोगों को दुर करने वाला होता है ( भाव प्रकाश)
प्रयोग- खुनी बवासीर _ २५० मि. ग्रा. दिन मे दो बार ताने पानी के साथ और साथ मे इसबगोल पाउडर आधा चमच रात को एक बार ताजे पानी के साथ ,
स्थानिक प्रयोग के लिये- रंसोत को पानी मे घोल कर गुदा प्रक्षालन करें , अर्शांकुर( मस्से) कुछ समय बात समाप्त हो जाएंगे।
हर प्रकार के नेत्राभिष्यंद( आई फ़्ल्यु) ---शुद्ध रसोंत को गुलाब जल मे घोलकर दो दो बुन्दे डाले बहुत फ़ायादा होता है
मुखपाक -- इसका क्वाथ का कुल्ला करने से फ़ायदा होता है ।
सभी प्रकार के घावों मे शहद और रसोंत को मिलाकर लगाने से बीटा डीन से जल्दी घाव को ठीक कर देता है ।
विषम ज्वर ( मलेरिया) मे १ - १ ग्रा. दिन मे दो बार लेने से फ़ायादा होता है ।
शुद्ध रसोंत को चेहेरे की फ़ुन्सियो पर लगाने पर उनको ठीक कर देता है
मंगलवार, 7 अप्रैल 2009
chronic Rhinitis (पीनस, पुराना नजला)
कई बार साधारण जुकाम , अपथ्य पालन करने पर या चिकित्सा न करने पर दुष्ट पीनस या नजले का रुप प्राप्त कर लेता है ,बार-बार छींको का आना, अत्यधिक नासा स्राव, श्लेष्मा से नाक का भरा रहना, आँखों मे लाली व स्राव, विपरित गन्ध आना, सिर मे दर्द, आदि दुष्ट पीनस मे निम्न्लिखित विकृतियाँ स्थाई रुप से आ सकती है -- श्लैष्मिक कला का जीर्ण शोफ़, नासास्रोत का कफ़ से भरा रहना, गन्ध्ग्राही केन्द्र की विकृति, वायु विवर( साईनस) का स्थाई विकार,
आयुर्वेदिक चिकित्सा व्यवस्था--१ शिरो विरेचन से गाढे कफ़ को निकालना, २ विरेचन ३ एनिमा ( आस्थापन) ४ कवलग्रह ( औषधि युक्त क्वाथ मुख मे रखाना) ५ निवात स्थान ६ शिर पर गर्म कपडा रखना ७ रुक्ष यवान्न सेवन( रुखे अन्नो का सेवन) और हरितिकी सेवन
चित्रक हरितकी, लक्ष्मि विलास रस, हरिद्रा खन्ड, सुतशेखर रस, व्योषादि वटी, तालीशादि चुर्ण, षडबिन्दु तैल नस्य, च्यवनप्राश, द्राक्षारिष्ट , आदि औषधियाँ भी बहुत ही हितकर है
सोमवार, 6 अप्रैल 2009
उपवास(लंघन) का महत्व
लंघन आंतरिक शुद्धि का सर्वोत्तम साधन है।विरेचन, पसीना, और एनिमा शरीर की शुद्धि की क्रियाएं भीतर का मल निकल देने वाली है ।किन्तु लंघन (उपवास) इन सबसे भिन्न है। लंघन का अर्थ यह है कि आवश्यकता और बलाबल के विचार से दो चार दिन खाने को ना लिया जाए , जिससे जठाराग्नि भीतर के उस सम्पुर्ण मल को भस्म कर डाले , जो रोग का कारण हो रहा है । पेट को नित्य भरते रहना और पाचक चुर्णॊं तथा औषधियों द्वारा मलों को पचाने की आपेक्षा , यह अचछा है कि पेट को कुछ आराम दिया जाए।
उपवास करने की विधि अत्यंत सरल है , आरम्भ मे अपने स्वभाव के कारण खाने का समय आने पर पेट खाने को मांगता है ,किन्तु कुछ समय ऎसा कष्ट होता है । तत्पश्च्यात कोइ दूखः नही जान पडता ।जो मोटे ताजे हो या जिनके शरीर पर चर्बी कि अधिकता हो उनके लिये ४-५ दिन उपवास करना कठिन नही। आरम्भ मे कुछ समय पर प्यास लगने पर मात्र जल पीना चाहिये । उसके बाद भुख लगने पर वेजीटेबल सूप लेना चाहिये। तत्पश्यात कुछ दिन तक दही का नुचडा पानी , फ़िर दुध ।
इस प्रकार शरीर के सम्पुर्ण मल और विषैले पदार्थ भस्म होकर शरीर मे नई शक्ति , स्फ़ूर्ति,नया रक्त , और नव-जीवन प्राप्त होता है।
उपवास समाप्त काने के कुछ दिन पीछे तक दलिया, थोडा घी पडी हुई खिचडी, शाक-भाजी, और दुध-दही का सेवन करना चाहिये। फ़िर नित्य का भोजन करने लगें।
शुक्रवार, 3 अप्रैल 2009
शरीर मे खुन की कमी
मेरी उम्र ३८ साल है , पुरे शरीर मे हलका हल्का सा दर्द बना रहता है , दिल की धड्कन तेज बनी रहती है , भुख बिल्कुल भी नही लगती है, थोडा सा काम कर लेने पर साँस फ़ुलने लगती है । सारा दिन थकावट सी बनी रहती है और नींद भी ज्यादा आती है , डा. कहते है कि यह खुन की कमी है । कृपया मार्गदर्शन करें। नेहा
उपरोक्त लक्षणॊ से यह लगता है कि आप कफ़ज उदर रोग से पिडित है ।
कुमार्यासव २५ मि. लि. तथा बासी पानी २५ मि. लि. , नवायास लौह ५०० मि. ग्रा. , योगराज गुगुलु= २५० मि. ग्रा. इन सभी को खाना खाने के बाद सुबह शाम ले.
पथ्य; साठी चावल, मुंग, हल्का एवं सुपाच्य खाना, हरी सब्जियाँ,
अपथ्य: गरिष्ठ भोजन, बार बार खाना, अत्यधिक पानी पीना, चाय, दिन मे सोना आदि.।
शुक्रवार, 27 मार्च 2009
बालों का झड्ना
बालो के झडने मे वातावरण , अनुवांशिक आदि मुख्य कारण होते है । आयुर्वेद मे बालो को अस्थि धातु का मल बताया गया है जब धातुओ के पोषण मे कमी हो जाती है और पित दोष अधिक बड जाता है तो बालो के झड्ने की समस्या होती है। सबसे पहले तो आप पित्त वर्धक आहार विहार से परहेज रखे ।
गरिष्ठ और तला हुआ, मसाले दार भोजन, फ़ास्ट फ़ुड, चाय, आदि से परहेज रखें।
बालो मे अपने उपयुक्त समय मे पंच तिक्त घृत और महाभृंगराज तैल दोनो मिलाकर हर रोज बालो की जड मे लगाये, तथा दहि और बेसन से बालो को धोये।
साबुन और सैम्पु से बाल कभी ना धोये।
खाने के लिये:
धात्री लौह २५० मि. ग्रा
प्रवाल पिष्टि २५० मि. ग्रा
आँवला चुर्ण १ ग्रा.
भृंगराज चुर्ण २ ग्रा
यह एक मात्रा है , सुबह शाम ताजे पानि के साथ ।
रात को सोते समय द्राक्शावलेह एक चमच दुध के साथ॥
नस्य के लिये षड बिन्दु तैल तीन तीन बुंदे डाले ।
ऎसा ३ महीनो तक करे तथा पथ्य पालन करे । आप तीन महीनो के बाद अपने आप को स्वस्थ महसुस करोगे ।